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यमराज की यह आज्ञा सुनकर साधु ने आपत्ति जताते हुए कहा- महाराज! इस पापी के स्पर्श से मैं अपवित्र हो जाऊंगा.

मेरी तपस्या तथा भक्ति का पुण्य निरर्थक हो जाएगा. मेरे पुण्य कर्मों का उचित सम्मान नहीं हो रहा है.

धर्मराज को साधु की बात पर बड़ा क्षोभ हुआ. वह क्षुब्ध होकर बोले- निरपराध व्यक्तियों को लूटने और हत्या करने वाला डाकू मरकर इतना विनम्र हो गया कि तुम्हारी सेवा करने को तैयार है.

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