गणेश चतुर्थी से शुरू होगा वार्षिक दस दिनों का गणेश उत्सव. श्रीगणेश जी को प्रसन्न करने के जो विधान शास्त्रों में कहे गए हैं, उन्हे थोड़ा-थोड़ा करके प्रस्तुत करते रहेंगे. सबसे पहले गणेश चतुर्थी को गणपति स्थापना की वैदिक विधि जानेंगे.
श्री गणेशजी परमदेव हैं, आदि देव हैं. माता पार्वती ने उन्हें प्रसन्न करके अपने पुत्र रूप में आने की प्रार्थना की थी. इसलिए वे गौरीपुत्र कहे गए हैं. गौरीपुत्र, गजानन, एकदंत आदि श्रीमहागणेशजी के स्वरूप हैं जो उन्होंने विभिन्न प्रयोजनों से धारण किया. श्रीगणेश तो आदिदेव हैं जैसे शिव, नारायण, भगवती, सूर्य, ब्रह्मा आदि हैं. गणेश चतुर्थी के बारे में पुराणों में आता है कि इसी दिन महागणपति भगवती पार्वती की लालसा पूरी करने के लिए प्रकट हुए थे.
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लोग बस यही समझते हैं कि शिव-पार्वती के पुत्र ही गणेश हैं. यह तो बात वैसी ही हो गई है जैसे देवकी-वासुदेव के पुत्र श्रीकृष्ण का एक स्वरूप है. श्रीकृष्ण के सारे स्वरूप और नारायण इससे भिन्न हैं. आपको ये बातें थोड़ी अचरज में डालती होंगी परंतु शास्त्र की बात तो यही है. आप प्रभु शरणम् से जुड़ते हैं शास्त्र की वे बातें सीखने समझने को जो कम प्रचलित हैं. जिनकी चर्चा नहीं होती है.
श्रीगणेशजी के दस दिनों के उत्सव में हम प्रभु शरणम् ऐप्प में आपको महागणेश से जुड़े ऐसे ज्ञानवर्धक और रोचक तथ्य लेकर आएंगे जो आपको जानना चाहिए. जिनसे आप अब तक परिचित न थे. विश्वास करें इन्हें पढ़कर आपको बिल्कुल नई बातें जानने को मिलेंगी. ऐसी बातें जिन्हें जानकर मन आनंदित हो जाएगा.
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गणेश चतुर्थी पर गणेशजी की प्रतिमा स्थापना कैसे करेंः
भाद्रपद शुक्लपक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी या गणेश चतुर्थी भी कहा जाता है. इस दिन से गणेशजी की पूजा का विशेष उत्सव शुरू होकर अनंत चतुर्दशी को संपूर्ण होती है. श्रीगणेश जी का यह पूजन इसलिए किया जाता है क्योकि पुराणों के अनुसार माता पार्वती के घर में महागणपतिजी ने इसी दिन अवतार ग्रहण किया था. गणेश चतुर्थी की पूजा से जुड़ी सारी शास्त्राधारित बातें आज हम प्रस्तुत कर रहे हैं. एक अनुरोध करेंगे कि फेसबुक से इस पोस्ट को देखते हुए आप आए हैं. फेसबुक की पोस्ट को आप भी शेयर कर देंगे ताकि किसी और भक्त तक पहुंच जाए. धर्म का प्रचार धर्मकार्य है. इसे अवश्य करें.
इस पोस्ट में आप जानेंगे-
- गणेश चतुर्थी 2017 के मुहूर्त
- गणेश चतुर्थी पर षोडषोपचार विधि से गणपति स्थापना की विधि एवं मंत्र
- गणेश चतुर्थी पर गणपति के अंग पूजा का माहात्मय एवं विधि
- गणेश चतुर्थी की कथा
श्रीगणेशजी की प्रतिमा स्थापना कैसे करेंः
शास्त्रों में भगवान गणेश के स्थापना पूजन विधि को 16 भागों में कहा गया है जिसे षोडशोपचार पूजन विधि कहते हैं. षोडशोपचार में आवाहन, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, गंध, पुष्प, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य, तांबूल, द्रव्य दक्षिणा, आरती, परिक्रमा (प्रदक्षिणा) ये 16 उपचार आते हैं. इन 16 तरीकों से पूजन शुरू करने से पहले भगवान के पूजन का संकल्प लिया जाता है.
यदि भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा आपके घर में अथवा पूजा स्थान में पहले से ही प्राण-प्रतिष्ठित हैं तो षोडशोपचार पूजा में आवाहन और प्रतिष्ठापन के उपचार की आवश्यकता नहीं है. यह कार्य तो उस समय हुआ होगा जब प्रतिमा स्थापना की गई होगी. भगवान श्रीगणेश का आवाहन और प्राण-प्रतिष्ठा नई मूर्ति स्थापना की ही की जाती है. घर में प्रतिष्ठित मूर्तियों का पूजा के पश्चात विसर्जन नहीं किया जाता उनका उत्थापन किया जाता है. षोडशोपचार यानी 16 प्रकार से पूजन की संक्षिप्त और सरलतम विधि इस प्रकार है-
आवाहन के लिए सर्वप्रथम, निम्नमन्त्र को पढ़ते हुए भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा के सम्मुख आवाहन-मुद्रा अर्थात जोड़ने और हथेलियों को खोलकर विनीत भाव में हो जाएं और भगवान का आह्वान करें.
प्राण प्रतिष्ठाः
आह्वान के बाद मूर्ति में भगवान की प्रतिष्ठा करनी होती है. इसके लिए निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिए.
ऊँ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमहागणाधिपत्यै नमः सुप्रतिष्ठो वरदो भव।।
2. आसन प्रदान करनाः
प्रतिष्ठा के बाद भगवान को आसन समर्पित किया जाता है. आसन के लिए पांच पुष्प अंजुली में लेकर भगवान की प्रतिमा के समक्ष छोड़े और निम्न मंत्र का उच्चारण करें.
ऊँ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमहागणाधिपत्यै नमः आसनम् समर्पयामि।।
3. पाद्य समर्पण यानी पैर धुलानाः
आसन देने के बाद निम्न मंत्र पढ़ते हुए भगवान को पांव धोने के लिए जल प्रदान करें.
ऊँ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमहागणाधिपत्यै नमः पाद्यं समर्पयामि।।
4. अर्ध्य समर्पणः
इसके बाद भगवान को अर्घ्य समर्पित किया जाता है. अर्घ्य समर्पित करने का अर्थ हुआ जहा भगवान को प्रतिष्ठापित किया है वह वातावारण पवित्र और सुगंधित है.
गंध मिश्रित जल समर्पित करें और निम्न मंत्र का उच्चारण करें.
ऊँ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमहागणाधिपत्यै नमः अर्घ्यं समर्पयामि।।
5. आचमन समर्पणः
इसके बाद भगवान को आचमन के लिए जल समर्पित करना चाहिए. निम्न मंत्र पढ़ते हुए भगवान को आचमन के लिए जल समर्पित करें-
ऊँ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमहागणाधिपत्यै नमः मुखे आचमनीयं जलं समर्पयामि।।
6.स्नानः
इसके पश्चात भगवान को स्नान कराना चाहिए. भगवान का स्नान भी कई प्रकार से किया जाता है. जल से स्नान, पंचामृत स्नान, दूध, दही, घी, मधु, शर्करा, सुवासित शुद्धोदक स्नान कराया जाता है. जैसे हम स्नान करते हैं तो जल डालते हैं, साबुन लगाते हैं, शैंपू लगाते हैं, कंडीशनर लगाते हैं. फिर तेल, क्रीम स्प्रे आदि करते हैं. उसी प्रकार का भाव है इन स्नान में.
ऊँ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमहागणाधिपत्यै नमः सर्वांग स्नानं समर्पयामि।।
7. वस्त्र एवं उपवस्त्र समर्पणः
इसके बाद भगवान को वस्त्र समर्पित किया जाता है. वस्त्र में एक तो पूरा वस्त्र और फिर उत्तरीय जिसे आप गमछा या रूमाल समझ लें.
ऊँ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमहागणाधिपत्यै नमः वस्त्रं च उत्तरीयं च समर्पयामि।।
इस मंत्र के साथ गणेश प्रतिमा पर नए वस्त्र एवं उपवस्त्र चढ़ाने चाहिए.
8. यज्ञोवपीत यानी जनेउ समर्पणः
भगवान को निम्न मंत्र पढ़ते हए जनेऊ समर्पण करें-
ऊँ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमहागणाधिपत्यै नमः यज्ञोपवीतं समर्पयामि।।
9. गंध समर्पणः
इसके बाद भगवान को सुंगधित द्रव्य समर्पण करना चाहिए और निम्नमंत्र का उच्चारण करना चाहिए.
ऊँ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमहागणाधिपत्यै नमः गंधम् समर्पयामि।।
10. अक्षत समर्पणः
इसके बाद अक्षत चावल भगवान को निम्न मंत्र पढ़ते हुए समर्पित करना चाहिए-
ऊँ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमहागणाधिपत्यै नमः अक्षतं समर्पयामि।।
11. पुष्प, शमी, दूर्वा घास, सिंदूर आदि शृंगार समर्पित करें
इनमें से जो भी पदार्थ समर्पित कर रहे हों बारी-बारी से उसका नाम लेते जाएं. मंत्र रहेगा- ऊँ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमहागणाधिपत्यै नमः पुष्पं समर्पयामि… इसमें ही जोड़ते जाएं.
12. धूप समर्पणः
इसके बाद धूप जलाकर भगवान को निम्न मंत्र कहते हुए दिखाएं
ऊँ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमहागणाधिपत्यै नमः धूपं समर्पयामि।
13. दीप समर्पणः
घी के दीपक जलाकर भगवान को सर्वांग दिखाएं और निम्न मंत्र का पाठ करें-
ऊँ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमहागणाधिपत्यै नमः दीपं समर्पयामि।।
14. नैवेद्य या मिष्ठान्न आदि समर्पणः
भगवान को शुद्ध पात्र में मिष्ठान्न जिसमें मोदक या लड्डू सबसे उचित है समर्पित करें. 21 लड्डु का भोग लगाएं. पांच प्रतिमा के पास छोड़कर शेष पूजन के बाद भक्तों में बांट दें.
ऊँ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमहागणाधिपत्यै नमः नैवेद्यम् समर्पयामि।।
15. तांबूल समर्पणः
भगवान को पान अर्पित करें एवं निम्न मंत्र का पाठ करें. इस पान में तंबाकू युक्त कुछ भी न हो.
ऊँ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमहागणाधिपत्यै नमः पूंगीफलादि सहितम् तांबूलम् समर्पयामि।।
15. द्रव्य दक्षिणा समर्पण
हाथ में कुछ धन लेकर श्रद्धाभाव से भगवान के चरणों में इस भाव से अर्पित करें कि हे भगवान मेरा क्या है, सब आपका ही दिया है. समस्त आपका आपको समर्पित है. आप जो प्रसाद स्वरूप देंगे वही मेरे लिए पर्याप्त है. भावरूप में कुछ दक्षिणा समर्पित कर रहा हूं.
ऊँ सिद्धि-बुद्धि सहिताय श्रीमहागणाधिपत्यै नमः दक्षिणां समर्पयामि।।
इसके बाद आरती की जाती है.
आरती एवं प्रदक्षिणाः
इसके बाद भगवान की विधिवत आरती कर लेनी चाहिए. पूजा-पाठ में जो कमियां रह जाती हैं उसकी पूर्ति आरती से हो जाती है. भगवान की कई आरती प्रभु शरणम् ऐप्प के गणपति मंत्र सेक्शन में है. आरती के बाद क्षमा प्रार्थना एवं प्रदक्षिणा या परिक्रमा कर लेनी चाहिए. यदि परिक्रमा के लिए स्थान न हो तो अपने आसन पर ही दाएं से बाएं घूमते हुए परिक्रमा कर लें. गणेशजी की चार परिक्रमा की जाती है.
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गणेश चतुर्थी की पूजा में लोग अक्सर एक भूल कर देते हैं वह है गणपति के अंगों का विधिवत पूजन न करना. आपको यह भूल नहीं करनी. अंग पूजा के बिना गणेश चतुर्थी की पूजा अधूरी है. यह पूजा बहुत सरल है. दो मिनट लगते हैं. तो इसे क्यों न करें. जानिए अगले पेज पर अंग पूजा.
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बहुत सुंदर कथायें धन्य वाद