भाद्रपद कृष्ण पक्ष की एकादशी अजा एकादशी या कामिका एकादशी के नाम से जानी जाती है. इस दिन भगवान श्रीकृष्णजी की पूजा का विधान होता है. अजा एकादशी या कामिका एकादशी का प्रभाव ऐसा है कि राजा हरिश्चंद्र ने अपना खोया सबकुछ पुनः प्राप्त कर लिया था.
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अजा एकादशी या कामिका एकादशी का सभी एकादशियों में विशेष स्थान है. भगवान श्रीराम के कुल के पूर्वज राजा हरिश्चंद्र ने इसी व्रत के पुण्यफल से अपना खोया सबकुछ प्राप्त किया था. सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र को अजा एकादशी या कामिका एकादशी की प्रेरणा कैसे मिली, उन्होंने किस विधि से यह व्रत किया, क्या प्रभाव रहा यह सबकुछ जानेंगे. सबसे पहले जानेंगे कि एकादशी व्रत में क्या ध्यान रखना चाहिए.
अजा एकादशी या कामिका एकादशी व्रत में रखें इन बातों का ध्यानः
- दशमी तिथि की रात्रि में मसूर की दाल खाने से बचें.
- चने न खाएं.
- सब्जी में शाक न लें.
- शहद का सेवन न करें इससे एकादशी व्रत के फल कम होते है.
- यदि भूल से इनमें से कुछ भी खा लिया तो क्षमा प्रार्थना करें.
- व्रत के दिन और दशमी तिथि के दिन पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करें.
- पूर्ण ब्रह्मचर्य अर्थात मन, वचन और कर्म तीनों प्रकार से ब्रह्मचर्य रखें. पुरुष स्त्री प्रसंग और स्त्रियां पुरुष संसर्ग का भाव न रखें.
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अजा एकादशी या कामिका एकादशी व्रत पूजन की विधिः
- एकादशी तिथि के दिन शीघ्र उठना चाहिए.
- घर की सफाई करें.
- इसके बाद तिल और मिट्टी के लेप का प्रयोग करते हुए, कुशा से स्नान करना चाहिए.
- स्नान आदि कार्य करने के बाद, भगवान श्रीकृष्णजी की पूजा करनी चाहिए.
- भगवान श्री विष्णुजी का पूजन करने के लिए एक शुद्ध स्थान पर धान्य (गेहूं आदि) रखना चाहिए.
- धान्यों के ऊपर कलश स्थापित किया जाता है.
- कलश को लाल रंग के वस्त्र से सजाया जाता है. स्थापना के बाद उसकी पूजा की जाती है.
- इसके पश्चात कलश के ऊपर श्रीविष्णुजी की प्रतिमा स्थापित करके व्रत का संकल्प लें.
- संकल्प के पश्चात धूप, दीप पुष्प से श्रीविष्णु या कृष्णजी की आरती की जाती है.
- दिनभर भगवान श्रीकृष्ण का अपनी मनोकामना के अनुरूप मंत्रों से ध्यान करें.
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अजा एकादशी या कामिका एकादशी की व्रत कथा
कुन्तीपुत्र अर्जुन श्रीकृष्ण से बोले- हे जनार्दन! अब आप कृपा करके मुझे भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की एकादशी के विषय में भी बतलाइए! उस एकादशी का क्या नाम है, इसका व्रत करने की क्या विधि है? उस व्रत करने से क्या फल मिलता है?
श्री कृष्ण बोले- “हे पार्थ ! भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अजा एकादशी या कामिका एकादशी कहते हैं. जो मनुष्य इस दिन भक्तिपूर्वक मेरी पूजा करते हैं तथा व्रत करते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं. लोक और परलोक में सहायता करने वाली इस एकादशी व्रत के समान विश्व में दूसरा कोई व्रत नहीं है.
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अब ध्यानपूर्वक इस एकादशी की कथा सुनो –
प्राचीनकाल में अयोध्या नगरी में एक चक्रवर्ती राजा राज्य करते थे- उनका नाम हरिश्चन्द्र था. वह अत्यन्त वीर, प्रतापी तथा सत्यवादी थे. हरिश्चंद्र इतने सत्यवादी थे कि स्वप्न में देखी बात को भी सत्य सिद्ध करते थे. दैवयोग से राजा ने स्वप्न में अपना राज्य अपना सबकुछ विश्वामित्र को दान कर दिया. परिस्थितियां कुछ ऐसी हुईं कि राजा को अपनी पत्नी और अपने एकमात्र को भी बाजार में बेच देना पड़ा.
इसके बाद राजा स्वयं वह एक चाण्डाल के सेवक बन गए. वह चांडाल के सेवक के रूप में श्मशान में आने वाले हर शव के शरीर से कफन उतारने का काम करने लगे. पत्नी और पुत्र किसी के यहां सेवक की तरह जीवन जी रहे थे. कफन उठाने जैसे आपत्ति के काम में भी हरिश्चंद्र ने कभी सत्य को न छोड़ा. इसी प्रकार कई वर्ष बीत गये.
देवताओं ने उनकी सत्यनिष्ठा की एक और कड़ी परीक्षा ली. उनके पुत्र रोहिताश्व को सर्प ने डंस लिया और उसकी मृत्यु हो गई. पत्नी पुत्र को लेकर श्मशान में आई वहां पर हरिश्चंद्र चांडाल कर्म कर रहे थे. रानी के पास देने को कफन नहीं था इसलिए राजा ने अंत्येष्टि की अनुमति न दी. राजा को अपने इस नीच कर्म पर बड़ा दुःख हुआ.
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वह इससे मुक्त होने का उपाय खोज रहे थे. वह सदैव इसी चिन्ता में रहने लगे कि मैं क्या करुं? किस प्रकार इस नीचकर्म से मुक्ति पाऊं? वह इसी चिन्ता में थे कि गौतम ऋषि वहां आ पहुंचे. राजा ने उन्हें प्रणाम किया और अपना दुःख सुनाया. राजा की दुःखभरी कहानी सुनकर महर्षि गौतम भी दुःखी हुए.
गौतम बोले- हे राजन्! भाद्रपद के कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम अजा है. तुम उस एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करो तथा रात्रि जागरण करो. इससे तुम्हारे समस्त कष्ट दूर हो जायेंगे.
गौतम ऋषि ने राजा को व्रत की विधि बताई और अंतर्ध्यान हो गए. राजा ने यथासंभव साधन के साथ अजा एकादशी या कामिका एकादशी को मुनि के कहे अनुसार व्रत तथा रात्रि-जागरण किया. उसी व्रत के प्रभाव से राजा के समस्त कष्ट मिट गए. उस समय स्वर्ग में नगाड़े बजने लगे तथा पुष्पों की वर्षा होने लगी.
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अपने सामने ब्रह्मा, विष्णु, महादेवजी तथा इन्द्र आदि देवताओं को खड़ा पाया. अपने मृतक पुत्र को जीवित तथा स्त्री को वस्त्र तथा आभूषणों से युक्त देखा. व्रत के प्रभाव से उनको पुनः राज्य मिला.
वास्तव में ऋषि विश्वामित्र ने राजा की परीक्षा लेने के लिए यह सब कौतुक किया था किन्तु अजा एकादशी के व्रत के प्रभाव से सारा षड्यंत्र समाप्त हो गया. अन्त समय में राजा हरिश्चन्द्र अपने परिवार सहित स्वर्गलोक को गए.
हे राजन् ! यह सब अजा एकादशी या कामिका एकादशी के व्रत का प्रभाव था. जो मनुष्य इस व्रत को विधिपूर्वक करते हैं तथा रात्रि-जागरण करते हैं उनके समस्त पाप नष्टि हो जाते हैं और अन्त में वे स्वर्ग जाते हैं. इस एकादशी की कथा के सुनने मात्र से ही अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है.
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