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वृतासुर को मारने के लिए इंद्र ने अपना वज्र चलाया तो वह टूट गया. उसे मारने के लिए नए और ज्यादा मजबूत वज्र की जरूरत थी. दधीचि ने शिवजी से वरदान लिया था कि उनकी हड्डियों इंद्र के वज्र से ज्यादा मजबूत हो जाएं.
भगवान विश्वकर्मा को नया वज्र बनाने का आदेश श्रीहरि से मिला तो विश्वकर्माजी ने कहा कि दधीचि की हड्डियां मिलें तभी वह वज्र बना सकते हैं. इंद्र के मांगने पर दधीचि ने हड्डियां दान कर दीं.
जब यह घटना घटी तब दधीचि का बेटा पिप्लाद बहुत छोटा था. बाद में उसे बात पता चली तो यह सोचकर उसे बहुत क्रोध आया कि देवताओं ने अपने लाभ के लिए उसके पिता के प्राण ले लिए.
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