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मित्रों शिव-पार्वती की सुंदर कथा शृंखला महादेव शिव शंभु एप्पस में शुरू हुई है. उस शृंखला कीएक कथा यहां दे रहे हैं. पिछली कथा और पूरी शृंखला का आनंद लेने के लिए प्ले स्टोर में Mahadev Shiv Shambhu एप्पस सर्च करके डाउनलोड कर लें.
तीसरा भाग… पिछली कथा से आगे

कानभूति के कहने पर वररुचि ने अपने बारे में बताना शुरू किया. वररुचि ने बताया- मैं कौशांबी नगर में रहने वाले ब्राह्मण सोमदत्त के वहां पैदा हुआ. मेरी माता का नाम वसुदत्ता था.

मेरी माता थी तो ऋषि पुत्री परंतु श्राप के चलते उसका विवाह मेरे पिता के साथ हुआ था. बचपन में ही मेरे पिता का देहांत हो गया था सो मुझे पालपोस कर मां ने ही बड़ा किया था.

एक बार मेरे घर दो यात्री आए. दोनों विद्वान थे. रास्ते में शाम हो गयी सो उन्हें आज की रात मेरे घर ही काटनी थी. देर शाम को पास से ही मृदंग की आवाज सुनायी पड़ी तो मां को पिता की याद हो आयी.

मां बोली- लगता है भवानंद नाच रहा है. वह तेरे पिता का पक्का दोस्त था. मैंने मां से बोला मैं बस अभी जाता हूं और भवानंदजी का नृत्य देख कर तुरंत आता हूं फिर तुम्हारे सामने हूबहू कर के दिखाउंगा.

अतिथि ब्राह्मणों ने मेरी मां से पूछा- क्या यह ऐसा कर सकेगा? मां ने कहा कि मेरा बेटा जो एक बार देख सुन लेता है वह चाहे कितना भी कठिन क्यों न हो याद कर लेता है.

ब्राह्मणों को भरोसा न हुआ तो उन्होंने वेद का एक बहुत कठिन भाष्य बोला. मैंने तुरंत पलट कर उन्हें वैसे ही सुना दिया. वे चकित. कुछ सोच कर बोले, हम भी तुम्हारे साथ भवानंद का खेला देखेंगे.
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