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शिवजी की ओर से भेजे गए सप्तर्षियों ने अऩेक प्रकार से पार्वतीजी की परीक्षा कर ली है. उन्हें तरह-तरह से शिवविमुख करने का प्रयास किया किंतु पार्वतीजी का प्रण अटल है. सप्तर्षि इससे प्रसन्न हैं और पार्वतीजी को प्रणामकर उनकी महिमा गाते पर्वतराज के महल जाते हैं.

पर्वतराज को वे अपने आगमन का कारण बताते हैं और कहते हैं कि आपकी पुत्री का तप पूरा हुआ है. आप उन्हें तप से हटाकर समझा-बुझाकर घर ले आएं. समय आते ही उनका मनोरथ शीघ्र ही पूर्ण होगा.

हिमवान पार्वतीजी के पास आते हैं और उन्हें यह सब बताया है तो पार्वतीजी प्रसन्न हो गई हैं. वह पिता के साथ वन का त्यागकर घर चलने को सहमत हैं. मुनियों ने अपना कार्य पूर्ण किया और शिवजी को सब विस्तार से बता दिया.

चौपाई :
जाइ मुनिन्ह हिमवंतु पठाए। करि बिनती गिरजहिं गृह ल्याए॥
बहुरि सप्तरिषि सिव पहिं जाई। कथा उमा कै सकल सुनाई॥1॥

मुनियों ने जाकर हिमवान्‌ को पार्वतीजी के पास भेजा और वे विनती करके उनको घर ले आए, फिर सप्तर्षियों ने शिवजी के पास जाकर उनको पार्वतीजी की सारी कथा सुनाई.

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