आप बिना इन्टरनेट के व्रत त्यौहार की कथाएँ, चालीसा संग्रह, भजन व मंत्र , श्रीराम शलाका प्रशनावली, व्रत त्यौहार कैलेंडर इत्यादि पढ़ तथा उपयोग कर सकते हैं.इसके लिए डाउनलोड करें प्रभु शरणम् मोबाइल ऐप्प.
Android मोबाइल ऐप्प के लिए क्लिक करें
iOS मोबाइल ऐप्प के लिए क्लिक करें
ऋषियों ने सूतजी से हमने आप से भगवान सत्यनारायण की कथा का महात्मय और राजा चंद्रचूड़ की कथा बताने की प्रार्थना की. ऋषियों के विनम्र अनुरोध पर सूत जी ने चंद्रचूड़ की कथा सुनानी आरंभ की.

केदारखंड के मणिपुरक नगर में चन्द्रचूड नामक एक धार्मिक तथा प्रजा का बहुत ध्यान रखने वाले राजा रहते थे. वे अत्यंत शांत-स्वभाव, मृदुभाषी, धीर-प्रकृति तथा भगवान नारायण के परम भक्त थे.

उसी समय विंध्य देश में कुछ ऐसे लोग भी उत्पन्न हुए जो सनातन धर्म के विरोधी थे. विधर्मी बहुत उपद्रव मचाते थे. इस कारण राजा के साथ उनकी घोर शत्रुता हो गई.
राजा चंद्रचूड़ का उन विधर्मियों से भयंकर युद्ध हुआ. युद्ध में चन्द्रचूड की विशाल चतुरंगिनी सेना नष्ट हुई. कूट-युद्ध में निपुण तथा छल-कपट से चालें चलने वाले धर्म विरोधियों की सेना की क्षति बहुत ही कम हुई.

युद्ध में म्लेच्छों से परास्त होकर राजा चन्द्रचूड अपना देश और घर परिवार छोडकर अकेले ही वन में चले गये. इधर-उधर घूमते हुए वह काशीपुरी में पहुंचे. राजा ने देखा कि काशी तो द्वारका के समान ही भव्य एवं समृद्धिशाली है.

उन्होंने यहां अलग ही चलन देखा. उन्होंने देखा कि घर-घर किसी देव की पूजा बड़े ही सजधज और तैयारियों के साथ होती है. चंड्रचूड़ वहां की समृद्धि देखकर विस्मित हुए.

उन्हें विचार आया कि यदि इस समृद्धि का मूलमंत्र मिल जाए तो वह भी अपनी नगरी को ऐसा समृद्ध बनाने का प्रयास करेंगे. परंतु वह यह सोच कर निराश हो गए कि अभी तो उनके पास अपना राज्य भी नहीं है.

चंद्रचूड़ ने वरिष्ठ नागरिकों और विद्वान ब्राह्मणों से नगर की समृद्धि का मूलमंत्र पूछा तो सब ने कहा कि सत्यनारायण भगवान की ही यह कृपा है. यह सारा वैभव उनके व्रत और पूजन से ही है.
शेष अगले पेज पर. नीचे पेज नंबर पर क्लिक करें.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here