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एक साधु व एक डाकू एक ही दिन मरकर यमलोक पहुंचे. धर्मराज उनके कर्मों का लेखा-जोखा खोलकर बैठे थे और उसके हिसाब से उनकी गति का हिसाब करने लगे.
निर्णय करने से पहले धर्मराज ने दोनों से कहा- मैं अपना निर्णय तो सुनाउंगा लेकिन यदि तुम दोनों अपने बारे में कुछ कहना चाहते हो तो मैं अवसर देता हूं, कह सकते हो.
डाकू ने हमेशा हिंसक कर्म ही किए थे. उसे इसका पछतावा भी हो रहा था.
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