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द्वापर मे लाखों दैत्यों ने राजाओं का रूप धारण करके पृथ्वी पर बड़ा पाप किया. आहत होकर पृथ्वी ने कृशकाय गौ का रूप धरा और ब्रह्माजी के पास पहुंची और रो-रोकर अपना दुख सुनाने लगी.
पृथ्वी के दुखों को सुनकर ब्रह्माजी का हृदय दुख से भर गया. वह पृथ्वी को लेकर क्षीर सागर गए और पुरूष सूक्त से श्रीहरि की स्तुति की. ब्रह्माजी ने उसी समय एक आकाशवाणी सुनी.
उसके बाद ब्रह्माजी देवलोक पहुंचे और सभी देवताओं से कहा- मैंने भगवान की वाणी सुनी है. वह पृथ्वी के कष्टों का उद्धार करने को स्वयं अवतार लेने वाले हैं. तुम सब अपने अंश रूपों में पृथ्वी पर जन्म लेकर श्रीहरि की लीला में भागी बनो.
ब्रह्माजी ने सभी देवताओं को विभिन्न स्वरूपों के बारे में आदेश देकर पृथ्वी को सांत्वना दी. पृथ्वी को भरोसा हो गया कि अब उसके कष्ट समाप्त होने वाले हैं.
भोजवंश में राजा उग्रसेन हुए. देवक उनके भाई थे. देवक ने अपनी सभी पुत्रियों का विवाह मथुरा के राजा शूरसेन के पुत्र वसुदेव से कर दिया. देवकी देवक की सबसे छोटी पुत्री थीं.
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Dhanayvad
अच्छा लगा ।