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नर्मदा के तट पर धर्मपुर नाम का एक नगर था. वहां विश्वानर नाम के एक मुनि अपनी पत्नी शुचिष्मती के साथ निवास करते थे. वे परम पुण्यात्मा और बड़े शिवभक्त थे.
शुचिष्मती मातृत्व सुख प्राप्त नहीं कर पाई थीं. इससे दुखी शुचिष्मति ने विश्वानर से कहा- स्वामी आपके सान्निध्य में मैंने वे सभी सुख भोगे जिसकी एक स्त्री को पति से कामना रहती है. बस मातृत्व सुख अधूरा है.
विश्वानर भी संतानहीन होने से दुखी थे. शुचिष्मति ने कहा- मेरी बड़ी इच्छा है कि मैं भोलेनाथ के समान एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दूं. आप तो इतने बड़े शिवभक्त हैं. आप शिवजी को प्रसन्न कर पुत्ररूप में आने का वरदान मांगे.
पत्नी की अभिलाषा पूरी करने के लिए विश्वनार काशी आ गए घोर तप द्वारा भगवान शिव के वीरेश लिंग की आराधना करने लगे. उन्हें लगता था कि संभवतः स्वयं पिनाकी भगवान शुष्चिमती के जिह्वा पर विराजमान हो गए और ऐसी इच्छा व्यक्त की.
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