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प्रभु ने उनके शरीर पर हाथ फेरकर स्वस्थ कर दिया. अब उनके मन का सारा गर्व चूर हो चुका था. बजरंगबली को सारी बात समझ में आ गई. उन्होंने प्रभु से क्षमा मांगी.
भगवान श्रीराम ने कहा- आप संसार में मुझे सबसे प्रिय हैं. आपका अगर कोई प्रिय करता है तो वह मेरा ही प्रिय होता है. आपके मन में मुझसे अलग भाव आने ही नहीं चाहिए थे.
फिर श्रीराम ने हनुमानजी द्वारा लाए शिवलिंगो की स्थापना कराई और वरदान दिया- यदि कोई हनुमानजी द्वारा प्रतिष्ठित शिवलिंग की पूजा न कर मेरे द्वारा स्थापित शिवलिंग की पूजा करेगा तो उसकी पूजा व्यर्थ होगी.
हनुमानजी की पूंछ टूटी थी इसलिए प्रभु ने वहां हनुमानजी को छिन्न-पुच्छ(पूंछ), गुप्त पाद(पैर) रूप में गतगर्व(गर्वरहित) निवास करने को कहा.
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