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शिवजी को आशा थी कि हनुमान एक ही शिवलिंग लेकर जाएंगे. वह श्रीराम की प्रतिष्ठा में अपनी प्रतिष्ठा देखते थे. श्रीराम ने भी उन्हें हमेशा भरपूर सम्मान दिया.
बजरंग बली हड़बड़ी में थे वह निर्णय नहीं कर पाए और दोनों शिवलिंग लेकर चले.
भगवान तो अंतर्दृष्टि से सब देख ही रहे थे. हनुमान जैसे यशस्वी के मन में अपनी महत्ता और तेज उड़ने के घमंड का अंत नहीं हुआ तो उनके तेज का नाश हो जाएगा.
सबसे प्रिय भक्त को किसी अनुचित से रोकने के लिए भगवान कड़वी दवाइयां देते ही हैं. सो उन्होंने हनुमानजी के आने से पहले सैकत(बालु से बना) लिंग स्थापित कर दिया.
हनुमानजी लौटे तो उन्हें पता चला कि प्रभु ने तो पहले ही शिवलिंग स्थापित करा दिया है. वह सोचने लगे- मुझसे व्यर्थ का श्रम कराकर यह कैसा व्यवहार हो रहा है.
वह नाराज होकर प्रभु के सामने पहुंचे और कहा- मेरी भक्ति का यह कैसा ईनाम मिल रहा है. काशी भेजकर शिवलिंग मंगाने और फिर दूसरा शिवलिंग स्थापित कराकर मेरा उपहास क्यों कराया आपने?
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