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उसके बाद राजा दशरथ ने अपनी पीड़ा बताई और इंद्रदेव का परामर्श भी बताया. राजा ने कहा आप प्रसन्न हैं तो मेरी प्रजा की कुशलता के लिए रोहिणी पर से दृष्टि हटा लें.
शनिदेव ने कहा- हे राजन! जो विधि का विधान है उसे मैं बदलना नहीं चाहता लेकिन तुमसे प्रसन्न हूं इसलिए पूर्णरूप से तो नहीं परंतु तुम्हारे कष्टों के निवारण का एक आंशिक प्रबंध किए देता हूं.
मैं आंशिक रूप से रोहिणी पर से दृष्टि हटा लूंगा. इसका प्रभाव यह होगा कि गुजारे लायक वर्षा हो जाएगी. उस वर्षा के जल का प्रजा से कहना कि हर बूंद का सदुपयोग करे. जो अन्न आदि उपजें उसका उचित उपभोग करें. यदि ऐसा होता रहा तो प्राणरक्षा सरलता से हो जाएगी.
हे प्रतापी राजा दशरथ मेरी दशा से पीड़ित जो भी व्यक्ति इस स्तोत्र का पाठ करेगा मैं उसके कष्टों का निवारण करुंगा.
राजा दशरथ इस वरदान को पाकर प्रसन्न होकर लौटे और प्रजा को आदेश दिया कि शनिवार को इस स्तोत्र से शनिदेव का विधिवत पूजन और तेलदान किया जाए.
इस तरह भयंकर सूखे से अयोध्या को मुक्ति मिली.
राजा दशरथकृत शनि स्तोत्र का पाठ शनिदेव की कृपा प्राप्त करने के लिए करना चाहिए. शनिदेव के चरणों की ओर ध्यान करके इसका पाठ करना चाहिए. कभी भी उनके मुख की ओर न देखें.
शनि की ढैय्या या साढ़े साती के प्रभाव में हैं तो शनिदेव दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ और फिर शनि को तेल अर्पण करना और पीपल की जड़ों में संध्याकाल में जल देने से कष्टों से राहत मिलती है.
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