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यह सब शिव शर्मा की फैलायी माया थी. पर शिवशर्मा ने कहा- बेटा हो सकता है पिछले जन्म का कोई पाप इस जन्म में उभर आया हो. अब तो इसे झेलना ही है. सोम मन से माता पिता की सेवा में लगा रहता.
वह उनका मल मूत्र, मवाद धोता, दवा देता, खिलाता, पिलाता, सुलाता. उलटे शिव शर्मा उसे डांटते, फटकारते और मारते ही रहते. शिवशर्मा ने सोचा कि कठोर व्यवहार के बाद भी यह न कभी नाराज होता है न शिकायत करता है.बस सेवा में लगा रहता है.
इस परीक्षा में यह पास तो है पर इसकी एक आखिरी परीक्षा और लेकर देखा जाए. शिवशर्मा ने सोम से कहा- तुम्हारी रखवाली में हम अमृत कलश छोड़ गए थे. इस बीमारी से मुक्ति पाने का अब बस वही एक रास्ता है. अमृत कलश में से अमृत पिलाओ.
यह आदेश देने से पहले शिवशर्मा ने माया का प्रयोग रके अमृत को चुरा लिया था. सोम जब अमृत लेने गया तो कलश खाली था. वह बड़ा चिंतित और दुःखी हुआ कि आखिर मेरी रखवाली में रखे इस कलश से अमृत ले कौन गया?
उसने आंखें बंदकर भगवान विष्णु से प्रार्थना की- भगवन अगर मेरी तपस्या सच्ची है तो यह अमृत कलश पहले की तरह भर जाए. सोम ने आंखें खोलीं तो अमृत का कलश लबालब भरा हुआ था.
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