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विमान में से भगवान के सेवक उतरे और सबको बैठकर विष्णुलोक चलने को कहा. शिवशर्मा ने कहा- मैं, मेरा बेटा सोम और पत्नी अभी विष्णुलोक नहीं जायेंगे. आप इन चार बेटों को ही विष्णु धाम दें.
विमान चारों बेटों यज्ञ, विष्णु, धर्म, और वेद को लेकर विष्णुलोक चला गया. शिवशर्मा ने चारों बेटों को विष्णुलोक भेज दिया लेकिन अभी सोम की परीक्षा तो उन्होंने ली ही नहीं थी.
एक दिन उन्होंने सोम से कहा- सोम मैं तुमको एक कठिन काम सौंपना चाहता हूं. हम दोनों कल ही तीर्थ यात्रा पर निकल रहे हैं. हमें लौटने में समय लगेगा. घर में अमृत जैसी कीमती चीज रखी है तुम्हें इसकी जी जान से रक्षा करनी होगी.
अपने पिता से आदेश पाकर सोम बहुत खुश हुआ. वह अमृत की रखवाली करने लगा. दस साल बाद सोम के माता-पिता तीर्थयात्रा से लौटे. उनके पूरे शरीर में कोढ फूट गया था.
कई अंग गलने के करीब थे. वे किसी तरह चल फिर सकने वाले मांस का पिंड भर रह गये थे जिन्हें देखते ही घिन्न आती थी. सोम यह देख अचरज से पूछ बैठा- आप तो साक्षात विष्णु के समान हैं, आप को यह अधम बीमारी कैसे लग सकती है?
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