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उसके बाद “पुरुष सूक्त” या “विष्णु सहस्त्रनाम” या विष्णु वंदना (एप्पस में विष्णु शरणम् सेक्शन देखें) का पाठ भी कर सकें तो जरूर कर लें. भगवान को मीठे व्यंजनों का ही भोग लगाया जाता है जिसमें खीर का विशेष महत्व है. पूजा संपन्न होने के बाद प्रसाद ग्रहण कर लें. इस दिन नमकयुक्त आहार का सेवन न करें.
पूजित अनन्त सूत्र को निम्न मन्त्र पढ़ते हुए पुरुषों को दाहिनी भुजा में और स्त्रियों को बाईं भुजा बांध लेना चाहिए.
अनन्त संसार महासमुद्रे मग्नान् समभ्युद्धर वासुदेव।
अनन्तरूपे विनियोजितात्मा ह्यनन्तरुपाय नमो नमस्ते॥
अनन्तसूत्र बांधने के बाद परिवारजनों के साथ इस व्रत की कथा सुननी चाहिए. उसके बाद ब्राह्मण को भोजन कराकर स्वयं भी प्रसाद ग्रहण करना चाहिए.
अनंत पूजा का कथा-महात्म्यः
हस्तिनापुर का राजा बनने के बाद महाराज युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया.यज्ञ का मंडप अद्भुत था. उसमें जल व भूमि के बीच अंतर कर पाना आसानी से संभव नहीं था. जल स्थल जैसा तथा स्थल जल की तरह प्रतीत होता था. बहुत सावधानी करने पर भी बहुत से व्यक्ति धोखा खा चुके थे.
एक बार कहीं से टहलते-टहलते दुर्योधन भी उस यज्ञ-मंडप में आ गया और एक तालाब को स्थल समझ उसमें गिर गया. द्रौपदी ने यह देखकर ‘अंधों की संतान अंधी’ कहकर उसका उपहास किया. यह बात दुर्योधन के हृदय में बाण समान लगी.
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