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हर व्यक्ति में ईश्वर होते हैं. कैसे? उस व्यक्ति में मौजूद सबसे खास गुण जो उसे औरों से अलग और बेहतर बनाता है वही उसमें मौजूद ईश्वर का तत्व है.
हर व्यक्ति हर कार्य के लिए बना नहीं होता और होना भी नहीं चाहिए. यदि ऐसा होने लगा तो सबकी अपनी-अपनी अहमियत लुप्त हो जाएगी.
आपके अंदर की खूबियों के साथ जो ईश्वर तत्व है उस पर गर्व करें. दूसरों के ईश्वर तत्व से जलने का लाभ नहीं क्योंकि आप जिससे जल रहे हों जरूरी नहीं कि वह स्वयं को बहुत सुखी महसूस कर रहा हो. एक कथा पढ़िए जो आपने पहले भी पढ़ी हो शायद. फिर विचार करिए.
एक कौवा था. वह जहां पानी पीने जाता था उसके किनारे बरगद के पेड़ पर बहुत से बगुले रहते थे. कौआ आते जाते बगुलों को देखता.
सफेद रंग के बगुले उसे बड़े प्रिय लगते थे. कौए में हीन भावना आ गई. उसे लगने लगा कि वह पक्षियों में सबसे ज्यादा कुरूप है.
न आवाज ही अच्छी है न पंख सुंदर हैं और न चोंच. रंग तो ऐसा काला जिससे किसी को भी चिढ़ हो. वह दुखी रहने लगा. उसे कुछ भी अच्छा नहीं लगता.
किसी कौए को गाता सुन लेता तो उसके शरीर में तो जैसे आग ही लग जाती. एक बगुले से उसकी गहरी दोस्ती थी. उस बगुले ने मित्र को उदास देखा तो कारण पूछा.
कौआ बोला- तुम कितने सुंदर हो. झक सफेद तुम्हें देखकर तो मुझे अपने रंग से नफरत हो गई है. मेरा तो जीना ही बेकार है. बगुला हंसने लगा.
उसने कहा- दोस्त तुमने सुंदरता कहां देखी? मैं कहां सुंदर हूं. जब भी तोते को मैं देखता हूं तो सोचता हूं कि भगवान ने मुझे चटक हरा रंग और लाल चोंच क्यों नहीं दी.
जो कौआ बगुले की सुंदरता को सोचकर अवसादग्रस्त था, वह बगुला तो तोते के रंग का दीवाना निकला. कौए को बड़ा झटका लगा. उसके मन में सुंदरता को जानने की उत्सुकता बढ़ी.
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