पौष मास कृष्णपक्ष की शनिवार यानी 09 जनवरी को 2016 की पहली अमावस्या पड़ रही है. शनिवार को पड़ने के कारण यह शनि अमावस्या कही जाएगी और यह बहुत महत्वपूर्ण है. यह साल की पहली और आखिरी शनिश्चरी अमावस्य़ा होगी.
अगली शनि अमावस्या जून 2017 में होगी. अमावस्य़ा सुबह 7:40 से शुरू होकर 10 जनवरी की सुबह 7:20 मिनट तक होगी. कुछ राशियों के जातकों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है यह दिन.
आज के दिन सभी राशि के जातकों को मंदिर में जाकर शनि महाराज का तैलाभिषेक करना चाहिए, शिवजी की पूजा करनी चाहिए लेकिन मेष, सिंह, तुला, वृश्चिक और धनु राशि वालों के लिए विशेष रूप से पूजाकी आवश्यकता है.
मेष व सिंह राशि पर अभी शनि की ढैय्या चल रही है. धनु, तुला और वृश्चिक पर शनि की साढ़ेसाती है. तुला पर साढ़ेसाती का अंतिम ढैय्या है तो वृश्चिर राशि के लिए द्वितीय ढैय्या जबकि धनु राशि पर पहला ढैय्या है. इन पांचों राशि वालों को इस दिन पूजा से शनि पीड़ा से पूरे साल राहत मिलेगी.
जिनकी कुंडली में शनि दोष हो, शनि नीच होकर बैठे हों, शत्रुघर में हों, किसी पापग्रह के साथ बैठे हों, ढैय्या या साढेसाती के प्रभाव में हों, शनि का मारकेश हो तो ऐसे लोगों को शनि के कारण पीड़ा भोगना पड़ता है. उन्हें शनिदेव को प्रसन्न करने के विशेष उपाय करने चाहिए.
शनि दोष व्यक्ति को निर्धन, आलसी, दुःखी, नशीले पदार्थों का सेवन करने वाला, अल्पायु निराशावादी, जुआरी, कान का रोगी, कब्ज का रोगी, जोड़ों के दर्द से पीड़ित, वहमी, उदासीन, नास्तिक, बेईमान, तिरस्कृत, कपटी, अधार्मिक, व्यापार में हानि सहने वाला तथा मुकदमे व चुनावों में पराजित होने वाला बनाता है.
सबको पीड़ा नहीं देते शनिः
हर व्यक्ति के जीवन में शनि की साढ़े साती का सामन्यतः तीन बार आगमन होता है. शनि अनिष्टकारक, अशुभ और दुःख प्रदाता ही हैं ऐसा नहीं कहा जा सकता. शनि संतुलन एवं न्याय के ग्रह हैं.
सूर्य पुत्र शनि अपने पिता सूर्य से अत्यधिक दूरी के कारण प्रकाशहीन हैं इसलिए इन्हें अंधकारमय, विद्याहीन, भावहीन, उत्साह हीन, नीच, निर्दयी, अभावग्रस्त माना जाता है.
पर शनि ग्रहों के बीच दंडाधिकारी हैं. मजिस्ट्रेट तो बिना किसी लाग-लपेट के ही फैसले देगा. विशेष परिस्थितियों में शनि अर्थ, धर्म, कर्म और न्याय का प्रतीक हैं. इसके अलावा शनि ही सुख-संपत्ति, वैभव और मोक्ष भी देते हैं.
इसलिए जब आप शनि के प्रभाव में हों तो आप बुरी आदतों का त्याग कर दें. सोभ, छल, धोखा, बेईमानी से एकदम दूरी बना लें अन्यथा शनि बहुत पीडित करते हैं. यथासंभव आध्यात्म का मार्ग लें. बेइमानी से बचें. जिस शनि से आप डर रहे हैं वह आपके लिए लाभ के राह खोल देंगे.
शनि पीड़ा की शांति के उपायः
सबसे पहले मैं आपको बताता हूं ऐसे उपायों के बारे में जिसे आपको स्वयं करना है तभी लाभ है. उपाय कठिन नहीं है, इसलिए सरलता से किया जा सकता है. इऩमें से जितने संभव हों उतने उपाय कर लें.
हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, दशरथ कृत शनिस्तोत्र का यथासंभव स्वयं पाठ करना चाहिए.
अपाहिजों, बीमारों की सेवा करनी चाहिए. गरीबों को काला कंबल दान करना चाहिए.
अपने से बड़ों के प्रति आदर का भाव रखना चाहिए. माता-पिता की सेवा करें.
मांस-मदिरा के सेवन से बचें और यथासंभव सत्य ही बोलें.
सरसों के तेल का छाया पात्र में दान. एक बड़े कटोरे में सरसों का तेल लें. उसमें पांच का सिक्का डालकर अपनी छाया देखें. फिर वह तेल किसी को दान कर दें.
शनिवार को काले उड़द पीसकर उसके आटे की गोलियां या किसी भी आटे की गोलियां बनाकर मछलियों को खिलाना चाहिए.
चीटिंयों के लिए शनिवार को चीनी मिश्रित आटा खाने के लिए एकांत में रख देना चाहिए.
शनिवार की शाम पीपल के पेड़ के नीचे तिल या सरसों के तेल का दीपक जलाएं. पीपल की सात बार परिक्रमा भी करें.
शनि की ढैया से ग्रस्ति व्यक्ति को हनुमान चालीसा का सुबह-शाम यथासंभव पाठ करना चाहिए.
शनिवार के दिन एक रोटी में गुड़ घी लगाकर अपने सिर के ऊपर से सात बुरा घुमाकर कुत्ते के खिलाने से लाभ होता है. इसे भैरव प्रयोग कहा जाता है. रोटी घुमाते समय कोई टोके नहीं इसका ध्यान रखें. इसे कम से कम चार शनिवार और अधिकतम 16 शनिवार को करना चाहिए.
शनिवार के दिन किसी चौराहे पर जाकर पांच सिक्कों को मुठ्ठी में बंद करके अपने सिर पर से सात बार घुमाकर वहीं चौराहे पर रख देना चाहिए. यह प्रयोग एक या दो बार करने से भी लाभ होता है.
वेदपाठी ब्राह्मण से कराए जाने वाले उपायः
शनि ग्रह की शांति के लिए वैदिक मंत्र, बीजमंत्र और तंत्र मंत्र के एक विशेष संख्या में जप के बाद शमी की लकड़ी से हवन कराने से शनि की कष्टमयी पीडा से तत्काल राहत मिलती है. जो लोग शनि के कारण बहुत पीडित हैं उन्हें इसका सहारा लेना चाहिए.
वैसे तो शनि के 23,000 मंत्रों के जप का ही विधान है किंतु कलियुग में मंत्रों का प्रभाव तब होता है जब उसे चौगुना पाठ किया जाए. कलौ चतुर्गुणितं प्रोक्तं. इसलिए शनि के मंत्रों का 92,000 पाठ कराना चाहिए.
शनि वैदिक मंत्रः
ऊं शनों देवीरभिष्ठयsआपो भवन्तु पीतये।
शंयोरभित्रवन्तु नः।
शनि बीज मंत्रः
ऊं ऐं ह्रीं, श्रीं शनैश्चराय नमः
शनि तंत्र-मंत्रः
ऊं शं शनैश्चराय नमः
शनि के लिए रत्नः
किसी विद्वान ज्योतिषी के परामर्श से शनि के लिए नीलम धारण करें. नीलम के धारण करने में कई सावधानियां हैं इसलिए विद्वान का परामर्श लें. नीलम महंगा है. उसके स्थान पर उसका उपरत्न नीली भी धारण किया जा सकता है.
शनि की शांति के लिए लाजवर्त भी चांदी या पंचधातु में धारण किया जा सकता है. काले घोड़े की नाल या नौका की कील से बनी लोहे की अंगूठी को मध्यमा उंगली में शनिवार को धारण करना चाहिए.
शनि अमावस्या से अगर ये उपाय करते हैं तो विशेष रूप से शुभ है. यदि शनि अमावस्या से नहीं कर पाते तो किसी अन्य शुभ मुहूर्त में विद्वान के परामर्श से कर सकते हैं.
शनि से भय वे खाएं जो कुटिल हैं, दूसरों से जलते हैं, दूसरों को हानि पहुंचाने या बेईमानी की भावना रखते हैं, कपटी हैं. शनि आपके अंदर ऐसी भावना की प्रेरणा देकर आपकी परीक्षा भी लेते हैं.
यदि आप उनकी परीक्षा में फेल हो गए तो फिर परिणाम भोगने ही होंगे. यदि न्याय के मार्ग पर हैं तो शनि आपका कल्याण करते हैं.
प्रस्तुतिः
डॉ. नीरज त्रिवेदी,
सहायक प्रोफेसर ज्योतिषशास्त्र (राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान)
ज्योतिषाचार्य एवं ज्योतिषशास्त्र में पीएचडी (बनारस हिंदू विश्वविद्यालय)