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शिवजी ने कहा- यदि मुझ पर संदेह है तो स्वयं परख लीजिए. सती ने सीताजी का रूप धरा और श्रीराम-लक्ष्मण के सामने आ खड़ी हुईं. लक्ष्मण विस्मय में थे लेकिन प्रभु ने सारा भेद जान लिया.
प्रभु ने देवी को प्रणाम कर पूछा कि आज अकेली कैसे, महादेव कहां हैं? सती को भूल का अहसास हुआ. उन्हें पछतावा हो रहा था कि क्यों प्रभु की परीक्षा ऐसे समय में ली जब वह कष्ट में डूबे हैं?
श्रीराम सती के मन की बात जान गए. उन्होंने माया प्रकट की. सती को चारों तरफ प्रसन्न मन में श्रीराम-जानकी और लक्ष्मण दिखाई दे रहे थे. सती के मन की पीड़ा कम हुई और वह शिवजी के पास पहुंचीं.
सती ने श्रीराम की परीक्षा के लिए सीता का रूप लिया था. क्षणभर के लिए ही सही लेकिन उन्होंने जो रूप लिया था, शिवजी उनकी वंदना करते थे. अब शिवजी उन्हें पत्नी की तरह कैसे स्वीकारें!
शिवजी ने सती का त्याग करने का निर्णय कर लिया. उन्होंने एक पेड़ के नीचे आसन लगाया और समाधि में चले गए. सती कैलाश पर अकेली विलाप करतीं. उन्होंने श्रीराम का ध्यान किया- प्रभु अब यह जीवन व्यर्थ है. इसे त्यागने का समय आया है. आप मुझे वरदान दें कि अगले जन्म में भी शिवजी ही मेरे स्वामी होंगे.
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