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ब्राह्मण, मैं अधिकार समझ आपको दंड‌ और यह आज्ञा दे रहा हूं और अधिकार न समझ कर यह कह रहा हूं कि आप को जहां रहने का मन करे वहां रहिये, जिस प्रकार का भोजन करने की इच्छा हो करिये.

राजा जनक का इतना कहना था कि ब्राह्मण ने अपना चोला उतार फेंका. उसका सारा शरीर हल्की रोशनी से चमक रहा था. नये भेस वाला वह विचित्र शरीरधारी ब्राह्मण बोला, ‘मैं धर्म हूं.

महाराज, आपकी परीक्षा लेने के लिए ही मैं ब्राह्मण के वेश में आपके राज्य में रह रहा था. आप इस परीक्षा में सफल रहे. आपका जवाब सुनकर मैं समझ गया कि आप इस धरती पर सभी गुणों से युक्त धर्मात्मा राजा हैं.(महाभारत अश्वमेधिक, 32वां अध्याय )

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