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संकष्ठि गणेश चतुर्थी को बहुत फलदायी व्रत माना जाता है. खासतौर से संतान के सुख के लिए इसका बड़ा माहात्म्य कहा गया है. 27 जनवरी को है यह चतुर्थी. आपको इसकी पूरी पूजा विधि और दो प्रचलित व्रत कथाएं हम इस पोस्ट में बताएंगे.

गणेश-पूजन विधिः

माघ मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी को संकष्टि गणेश चतुर्थी या तिल चतुर्थी के नाम से जाना जाता है. भाद्रपद मास और माघ मास की चतुर्थी सभी चतुर्थियों में विशेष उत्तम बताई गई है.

यह व्रत महासंकट का नाश करने वाला और सभी मनोकानाओं को पूरा करने वाला है. इस दिन श्रद्धा से एकदंत गजानन का पूजन करने से सात माह के अंदर ही इच्छित फल की प्राप्ति हो जाती है.

जिन्हें किसी कारण अपने संतान को लेकर बहुत चिंता है, संतान की विद्य़ा और उन्नति में बाधा दिख रही है उन्हें यह व्रत करना चाहिए. संतान को जलते भट्टे जैसे संकट से निकालकल से आने वाली महिमा इस व्रत की बताई गई है.

प्रथमपूज्य गणेशजी विद्याबुद्धि के देवता तो हैं ही इस चतुर्थी को उनकी पूजा करने वाली माताओं के संतान की रक्षा करते हैं.

तिल चौठ को साफ-सुथरे लाल वस्त्र धारणकर, अपना मुख पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर रखें. तत्पश्चात स्वच्छ आसन पर बैठकर भगवान गणेश का पूजन करें.
लाल रंग के फूल, अक्षत, तिल के लड्डु आदि से भगवान गणपति की आराधना करें.

लाल रंग के फल, लाल फूल, रौली, मौली, अक्षत, पंचामृत आदि से श्रीगणेश को स्नान कराएं. धूप-दीप आदि से श्रीगणेश की आराधना करें.

गणेशजी को तिल से बनी वस्तुओं, तिल-गुड़ के लड्डूत तथा मोदक का भोग लगाएं.

गणेशजी को दूर्वा के साथ तिल के लड्डू भी चढ़ा दें.

इसके बाद संकष्टि गणेश चतुर्थी की कथा पढ़ें अथवा सुनें और सुनाएं.

तत्पश्चात गणेशजी की आरती करें.

एक माला (108 बार) “ऊं गं गणपत्ये नमः” मंत्र का जप करने के बाद चंद्रमा को अर्घ्य दें.

व्रत के बाद प्रसाद स्वयं भी ग्रहण करें और सभी को दें. दूध, मिष्ठान्न, फल-फूल आदि का सेवन कर सकते हैं. अगले दिन सुबह सूर्योदय के बाद भगवान की पूजा कर पारण कर लें.

व्रत की प्रचलित कथाएं आगे के पन्नों पर देखें.

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2 COMMENTS

    • आपके शुभ वचनों के लिए हृदय से कोटि-कोटि आभार.
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