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उनकी समझ में आ गया कि मेरी इतनी तपस्या और वेद, पुराण का अध्ययन, सब कुछ संगीत के सामने बहुत छोटा और महत्वहीन है. वे संगीत के बारे में जानने को उत्सुक हो गए और घोर तप करने लगे.

हज़ारों वर्ष बीतने पर आकाशवाणी हुई- नारद! यदि तुम गाना, बजाना सीखना चाहते हो तो मानसरोवर चले जाओ, वहां गानबंधु नामक उलूक रहते हैं. जाकर उनसे सीख लो.

नारद झट मानसरोवर गान बंधु के पास जा पहुंचे. देवर्षि नारद को संगीत सीखने के लिए आए देख गानबंधु खुश हुए. उन्होंने नारद को एक हज़ार दिव्य वर्ष तक संगीत सिखाया.

संगीत सीख लेने पर देवर्षि नारद ने गानबंधु को गुरुदक्षिणा के तौर पर उनकी आयु एक कल्प की कर दी और अगले कल्प में गरुड़ हो जाने का वरदान दिया. संगीत सीखकर नारद भगवान विष्णु के पास पहुंचे और गाना सुनाया.

विष्णु जी ने कहा- अभी तुम तुम्बुरु के बराबर नहीं हुए पहुंचे. कोई बात नहीं जब मैं कृष्णावतार लूंगा तो तुम्हें उनके बराबर का तो जरूर बनवा दूंगा. कृष्णावतार होने पर नारद भगवान के पास पहुंचे.

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