एक बार नारदजी ने भगवान विष्णु षटतिला एकादशी का माहात्म्य बताने का निवेदन किया. भगवान ने नारदजी से कहा- नारद! मैं तुमसे इस व्रत की महत्ता बताने वाली एक सत्य घटना कहता हूं, ध्यानपूर्वक सुनो.

पृथ्वीलोक में एक ब्राह्मणी रहती थी. वह सभी व्रत किया करती थी. कई बार तो वह लगातार एक मास का व्रत रखती थी. इससे उसका शरीर अत्यंत दुर्बल हो गया.

यद्यपि वह बुद्धिमान और धार्मिक थी फिर भी उसने व्रत के दौरान कभी देवताओं या ब्राह्मणों के लिए अन्न या धन का दान नहीं किया था.

मैंने सोचा कि दान नहीं करने के कारण यह ब्राह्मणी बैकुंठ लोक में भी अतृप्त रहेगी इसलिए मैं स्वयं भिखारी का वेश बनाकर पृथ्वी पर पहुंचा.

मैंने उस ब्राह्मणी से जाकर भिक्षा मांगी. वह ब्राह्मणी बोली- महाराज किसलिए आए हो?  मैंने कहा- मुझे भिक्षा चाहिए. कुछ दान करो.

इस पर उस ब्राह्मणी ने एक मिट्टी का ढेला मेरे भिक्षापात्र में डाल दिया. मैं उस मिट्टी के ढेले को लेकर ही बैकुंठ धाम लौट आया.

मरने के बाद ब्राह्मणी को स्वर्ग लोक मिला. उस ब्राह्मणी ने मुझे मिट्टी दान किया था इसलिए उसे मिट्टी का बना सुंदर महल जैसा घर मिला लेकिन उस घर में अन्नादि सामग्रियां नहीं थीं.

घबराकर वह मेरे पास आई और कहने लगी कि भगवन् मैंने अनेक व्रत से आपकी पूजा की फिर भी मेरा घर अन्नादि वस्तुओं से रहित है. इसका क्या कारण है?

इस पर मैंने कहा- पहले तुम अपने घर जाओ. तुमने देखने के लिए देवस्त्रियां आएंगी. तुम तब तक द्वार मत खोलना जब तक वे तुम्हें षटतिला एकादशी का पुण्य और विधि न सुना दें.

मेरे वचन सुनकर वह अपने घर में चली गई. जब देवस्त्रियां आईं और द्वार खोलने को कहा तो ब्राह्मणी बोली- आप मुझे देखने आई हैं तो षटतिला एकादशी का माहात्म्य मुझसे कहो.

उनमें से एक देवस्त्री ने षटतिला एकादशी की कथा सुनाई. जब ब्राह्मणी ने षटतिला एकादशी का माहात्म्य सुना तब द्वार खोल दिया.

देवांगनाओं ने उसको देखा कि न तो वह गांधर्वी है और न आसुरी है वरन पहले जैसी मानुषी है. उस ब्राह्मणी ने उनके बताए अनुसार षटतिला एकादशी का व्रत किया.

इसके प्रभाव से वह सुंदर और रूपवती हो गई तथा उसका घर अन्न आदि समस्त सामग्रियों से भर गया.

इसलिए हे नारद! मनुष्यों को मूर्खता त्यागकर षटतिला एकादशी का व्रत और लोभ न करके तिल आदि का दान करना चाहिए.

इससे दुर्भाग्य, दरिद्रता तथा अनेक प्रकार के कष्ट दूर होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है. षटतिला को तिल का दान जरूर करना चाहिए.

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संकलन व प्रबंधन: प्रभु शरणम् मंडली

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