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कुत्ता ऐसी ज्ञान की चर्चा कर रहा है, लक्ष्मणजी की तो आंखे फटी ही रह गईं. वह समझ गए कि कोई साधारण बात नहीं है.
लक्ष्मणजी ने कुत्ते को वहीं कुछ पल प्रतीक्षा करने का अनुरोध किया और लपककर दरबार के अंदर पहुंचे. वहां उन्होंने भगवान को कुत्ते की कही सारी बात बता दी.
प्रभु ने कहा- न्याय की आस में राजा के सामने प्रस्तुत होना प्रत्येक जीव का अधिकार है, चाहे वह किसी योनि का क्यों न हो. यह पूरी तरह से धर्मसंगत है. जाकर कहो कि मैंने स्वयं उससे अंदर आने का अनुरोध किया है.
लक्ष्मणजी ने प्रभु का संदेश जाकर सुना दिया तो कुत्ता स्वयं को धन्य महसूस करता दरबार में आया. प्रभु को यथाविधि अभिवादन किया और खड़ा हो गया.
उसके सिर में चोट लगी थी, खून बह रहा था. उसी दर्द के कारण वह विलाप कर रहा था.
श्रीराम ने कहा- तुम कुल का विचार त्याग दो औऱ निडर होकर अपना कष्ट कहो. यहां किसी से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं तुम्हें पूरा न्याय मिलेगा.
कुत्ते ने कहा- प्रभु सर्वार्थसिद्धि नामक एक भिक्षु ने बिना अपराध मेरे सिर पर लाठी से प्रहार किया. इससे मैं घायल हो गया हूं. मैं इसके इंसाफ के लिए आपके पास आय़ा हूं. मुझे न्याय प्रदान करें.
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