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गणेश चतुर्थी पूजन की कथाः
एक बार भगवान शंकर और माता पार्वती नर्मदा नदी के तट पर बैठे थे. देवी पार्वती ने समय व्यतीत करने के लिए भोलेनाथ से चौपड़ खेलने को कहा. महादेव तैयार हो गए. परन्तु वहां कोई और था नहीं. इसलिए इस खेल में हार-जीत का फैसला कौन करेगा?
भोलेनाथ ने कुछ तिनकों से पुतला बनाया और उसमें प्राण प्रतिष्ठा कर दी. पुतला बालक के रूप में जीवित हो गया. महादेव ने बालक से कहा- पुत्र हम चौपड़ खेलना चाहते हैं. तुम इस खेल का निर्णायक बनो. तुम फैसला करना कि चौपड़ में कौन हारा और कौन जीता?
चौपड का खेल तीन बार खेला गया. संयोग से तीनों बार पार्वतीजी जीत गईं. खेल समाप्त होने पर बालक से देवी ने उसका निर्णय पूछा. उसने महादेव को विजयी घोषित कर दिया. पार्वतीजी क्रोधित हो गईं.
उन्होंने कहा- तुममें निर्णायक बनने की क्षमता नहीं है. हार-जीत प्रत्यक्ष देखते हुए भी तुमने कुटिलता से गलत निर्णय सुनाया. इसलिए तुम लंगड़े होकर कीचड में पड़े रहो. बालक ने पैर पकड़ लिए और कहा- आप मेरी माता समान हैं. मैंने द्वेष में ऐसा नहीं किया अज्ञानतावश से हुआ. क्षमा कर दें.
पार्वतीजी पसीज गईं. उन्होंने कहा- यहां गणेश पूजन के लिए नाग कन्याएं आएंगी. उनसे पूजा की विधि समझकर तुम गणेश व्रत करो. ऐसा करने से तुम मुझे प्राप्त करोगे. यह कहकर शिव-पार्वती कैलाश चले गए. सालभर बाद नाग कन्याएं गणेश पूजन के लिए आईं.
उनसे पूजन विधि ठीक से समझकर बालक ने श्रीगणेश का 21 दिन लगातार व्रत किया. गणेशजी प्रसन्न हो गए और वर मांगने को कहा.
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