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ब्रह्माजी ने शाप में संशोधन करते हुए कहा- भगवान विष्णु सुदर्शन चक्र से तुम्हारा शीश काटेंगे. उसके बाद देवियां तुम्हारे शीश का अमृत से अभिसिंचन करेगी. जिससे तुम देवताओं के समान पूज्य हो जाओगे. इस तरह से मेरा यह शाप तुम्हारे लिए वरदान हो जाएगा.

उसके बाद भगवान श्रीहरि ने भी इस प्रकार यक्षराज सूर्यवर्चा से कहा- हे वीर! तुम्हारे शीश की पूजा होगी और मेरे आशीर्वाद से तुम देवरूप में पूजित होगे.

अभिशाप को वरदान में बदलता देख सूर्यवर्चा प्रसन्न मन से उस देवसभा से अदृश्य हो गए. भगवान विष्णु ने पृथ्वी के उद्धार के लिए श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लेकर मूर दैत्य का वध किया और मुरारी कहलाए.

पिता के वध का समाचार पाकर मूर दैत्य की पुत्री कामकटंककटा अंबिका की बड़ी भक्त थी. देवी अंबिका ने उसपर प्रसन्न होकर उसे अपना अमोघ खेटक प्रदान किया था.

पिता के वध की सूचना मिलते ही मूर की पुत्री जिसे मोरवी भी कहा गया, अजेय अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित हो श्रीकृष्ण से युद्ध करने लगी.

मोरवी ने देवी द्वारा प्रदान किए अपने अजेय खेटक (चंद्राकार तलवार) से भगवान के सारंग धनुष से निकलने वाले हर तीर के टुकड़े टुकड़े करना शुरू कर दिया.

दोनों में लंबे समय तक घोर संग्राम हुआ. अंबिका की भक्त और कृपापात्र होने के कारण भगवान श्रीकृष्ण मोरवी का वध करना नहीं चाहते थे.

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