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राजा पृथु ने कहा- हे देवर्षि जब शिवजी ने अपने माथे का तेज क्षीर सागर में डाल दिया तब क्या हुआ? नारदजी ने बताना शुरू किया. शिवजी के तेज ने सागर में बालक का रूप धारण कर लिया. वह शीघ्र ही बड़ा भी हो गया और गंगासागर से संगम पर रोने लगा.
उसका रूदन इतना भयंकर था जैसे प्रलंयाकारी मेघ बिना रूके भीषण गर्जना कर रहे हों. उससे पृथ्वीवासी व्याकुल होने लगे. लोकपालों को भी चिंता होने लगी. शिवजी के अंश के रूदन से ब्रह्मांड व्याकुल था. सभी देवता और ऋषिगण ब्रह्माजी के शरण में पहुंचे और इसका कारण पूछा.
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