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लक्ष्मीजी का रूप सौंदर्य देखकर असुर युद्ध करना भूल गए और उस नारी पर मोहित हो गए.

उस लक्ष्मीस्वरुपा नारी को असुरों ने सम्मान के साथ पालकी में बिठाया और पालकी को सिर पर उठाकर असुरलोक की ओर चले.

यह देख दत्तात्रेयजी ने इंद्र को आदेश दिया- देवी लक्ष्मी सप्तम स्थान का अतिक्रमण कर दानवों के सिर पर जा बैठी हैं. दानवों का विनाश निश्चित है. यही सबसे उचित समय है असुरों पर आक्रमण करो. जीत निश्चित है.

दत्तात्रेयजी ने बताया- जब लक्ष्मी चरण में हो तो गृहदात्री हैं. अस्थि में हो तो रत्न देती हैं. गुह्य स्थान में हो तो स्त्री, अंक में हो तो पुत्र, ह्रदय में हों तो मनोरथ पूरे करती हैं. कंठ में हो तो भूषण, वाणी में हो तो लावण्य, कवित्व और यश देती हैं.

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