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शुनःसख ने कहा- एक बार में नाम स्मरण नहीं कर सकती. भूख से पीड़ित लोगों की पीड़ा बढ़ा रही हो. लो इसका दंड भुगतो. शुनःसख ने अपने हाथ के त्रिदंड से स्त्री पर प्रहार किया.

वह पीड़ा से छटपटाकर अपने वास्तविक राक्षसी रूप में आई और प्राण त्याग दिए. जब ऋषियों ने शुनःसख को अस्त्र से युक्त देखा तो उन्हें आश्चर्य और क्रोध दोनो हुआ.

शुनःसख तुरंत अपने रूप में प्रकट हुआ. वह इंद्र थे. ऋषियों को प्रणामकर इंद्र ने कहा- मैं आपकी रक्षा के लिए यहां आया था. राजा वृषादर्भि ने आपको मारने के लिए राक्षसी को भेजा था.

आपने भूख से व्याकुल होने के बावजूद भी राजा वृषादर्भि जैसे अन्यायी का दन स्वीकार नहीं किया. अब संसार के सभी दुर्लभ पदार्थ आपको स्वतः ही अपनी इच्छाभर से प्राप्त होंगे.

इंद्र ने कहा- आपने अपने त्याग से पृथ्वी को मिला अकाल के दंड का मोचन कर दिया है. अब यह अकाल तुरंत ही समाप्त हो जाएगा. (वेद की कथा)

संकलन व संपादनः राजन प्रकाश

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