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ऋषियों को समझ में आ गया कि यह स्त्री कोई राक्षसी है और किसी बुरी नीयत से यहां खड़ी है. फिर भी भूख से व्याकुल होकर उन्होंने एक-एक करके अपना नाम बताकर सरोवर में प्रवेश आरंभ किया.

सबसे पहले अत्रि आए. उन्होंने कहा- पाप से बचाने वाले को अत्रि कहते हैं. पाप रूपी मृत्यु से बचाने वाला मैं अत्रि हूं. राक्षसी को कुछ समय न आया उसने उन्हें प्रवेश की आज्ञा दे दी.

फिर कश्यप आए. कश्यप ने कहा- कश्यप नाम है शरीर का. जो शरीर का पालन करता है उसे भी कश्यप समझो. काश के फूल की भांति उज्जवल होने के कारण काश्य भी समझो.

इस तरह शुनःसख की भी बारी आई. शुनःशेख ने कहा- जिस तरह इन महर्षियों ने अपना परिचय दिया वैसा मैं नहीं दे सकता क्योंकि इनके आगे मेरा कोई परिचय ही नहीं हो सकता.

मेरा नाम शुनःसख है अर्थात धर्मात्माओं का मित्र. धर्मात्माओं को कष्ट देने वाले को मैं दंडित करता हूं. स्त्री को कुछ समझ न आया. उसने शुनःसख से फिर नाम और परिचय पूछा.
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