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महर्षि अत्रि ने एक गूलर उठाया. उसका वजन देखकर वह समझ गए कि इसमें क्या है. उन्होंने फल जमीन पर फेंका और चले. किसी ने एक भी फल न छुआ. राजा के सेवक यह देखकर हैरान थे.
राजा अब चिढ़ गया. ऋषियों की भावना को उसने अपमान समझा और बदला लेने को उतारू हुआ. ऋषिगण चलते-चलते पुष्कर तीर्थ पहुंच गए. वहां एक बड़ा तालाब कमलपुष्पों से भरा था.
ऋषियों की भेंट एक संन्यासी से हुई. उसने अपना नाम शुनःशख बताया. शुनःशख ने तालाब के पास आने का कारण पूछा तो ऋषियों ने कहा-उन्हें बहुत भूख लगी है. खाने को कुछ है नहीं इसलिए वे कमलनाल खाकर रह लेंगे.
वे सरोवर की ओर बढ़े को शुनःशख भी साथ हो लिया. सरोवर में प्रवेश का एक ही रास्ता था. दरवाजे पर एक स्त्री खड़ी थी जिसके कारण रास्ता बाधित हो रहा था.
ऋषियों ने पूछा- आप कौन हैं और यहां क्यों खड़ी हैं? स्त्री बोली- मेरा नाम जानने की आवश्यकता नहीं, बस इतना जानें कि मैं इस सरोवर की रक्षक हूं.
ऋषियों ने कहा- हम भूख से व्याकुल हैं. यदि तुम्हारी आज्ञा हो तो हम कुछ मृणाल यानी कमलनाल उखाड़ लें. स्त्री ने कहा- एक शर्त है. एक-एक आदमी आगे आकर अपना नाम, स्वभाव और परिचय बताए तब सरोवर में प्रवेश कर सकता है.
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