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राजा इन्द्रसेन ने कहा- हे देवर्षि आपसे क्या छिपा है. भगवान विष्णु की कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल-मंगल है. प्रजा भी प्रसन्न है तो मैं अत्यंत प्रसन्न हूं,
नारद मुनि ने फिर से पूछा- हे राजा इंद्रसेन आपके राज्य में धार्मिक सत्संग एवं यज्ञ आदि के कार्य भी नियमित हो रहे हैं या नहीं?
राजा ने बताया- सभी धार्मिक अनुष्ठान यहां नियमपूर्वक किए जाते हैं. राजपरिवार के साथ-साथ प्रजा भी धर्मनिष्ठ है.
नारदजी संतुष्य थे. संतुष्ट देखकर इन्द्रसेन ने नारद मुनि से उनके दरबार में पधारने का कारण पूछा.
तब नारद मुनि ने कहा- राजन! मैं यमलोक गया था. वहां मैंने तुम्हारे पिताजी को देखा. वह बेहद दुखी थे. उन्होंने तुम्हारे लिए संदेशा भेजा है. मैं उनका संदेश लेकर तुम्हारे पास आया हूं.
इंद्रसेन को बड़ा आश्चर्य हुआ. उन्होंने पितरों का हाल-समाचार पूछा तो नारद बताने लगे.
नारदजी बोले- मृत्यु के उपरांत तुम्हारे पिता को मोक्ष की प्राप्ति नहीं हुई हैं इसलिए वह चाहते हैं तुम उनके लिए कुछ करो. उन्होंने बताया कि उनके पूर्व जन्म में उन से एकादशी का व्रत भंग हुआ था. इसके कारण ही उन्हें मोक्ष नहीं मिला है. तुम इसका निदान करो.
राजा इन्द्रसेन ने नारद मुनि से पूछा- हे मुनिवर मैं ऐसा कौन सा प्रयत्न करूं जिससे मेरे दिवंगत पिता को सुख-शांति और मोक्ष प्राप्त हो. मैं सब कुछ करने को तैयार हूं. आप कहें मुझे क्या करना होगा?
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