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एक दिन विष्णुदास के घर में एक विचित्र बात हुई. रोज की तरह पूजा-अर्चना समाप्त कर विष्णुदास ने भोजन बनाया. भगवान को भोग लगाना चाहा तो पाया कि वहां रखा सारा भोग गायब था.
वह फिर से रसोई बनाना चाहते थे लेकिन फिर ख्याल आया कि इससे तो संध्या वंदन के लिए समय ही न बचेगा. उस दिन विष्णुदास भूखे ही रह गए.
दूसरे दिन भी वही हुआ. रसोई बनाकर पूजा करने मंदिर पहुंचे. लौटे तो सारा भोजन नदारद था. विष्णुदास की समझ में नहीं आ रहा था कि यह कैसी माया है.
यही क्रम छह दिनों तक चलता रहा. वैष्णव बिना भगवान को कुछ अप्रित किए भोजन करता नहीं. विष्णुदास भोजन चोरी होने के कारण सात दिन भूखे ही रह गए.
उन्होंने भोजन की चोरी का पता लगाने की सोची. रसोई बनाई और एक कोने में छिपकर बैठ गए. थोड़ी देर बाद वहां एक चांडाल आया. उसका शरीर भोजन के अभाव में दुर्बल हो गया था.
वह इतना दुर्बल था कि तन पर हड्डियों का ढांचा ही बचा था. विष्णुदास को उसे देखकर दया आ गई. उन्होंने कहा रूको सूखी रोटी ही क्यों खाते हो थोड़ा घी तो ले लो.
चांडाल ने आवाज सुनी तो भागा लेकिन शरीर दुर्बल होने के कारण गिर गया. विष्णुदास ने उसे उठाकर भोजन दिया और खुद धोती के चोर से हवा करने लगे.
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