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यक्ष- संसार को कौन जीतता है?

युधिष्ठिर- जिसमें सत्य और श्रद्धा है वह विश्वविजयी हो सकता है.

यक्ष- भय से मुक्ति कैसे संभव है?

युधिष्ठिर- भय से मुक्ति का एकमात्र रास्ता वैराग्य है.

यक्ष- मुक्त कौन है?

युधिष्ठिर- जो अज्ञान से परे है, वह मुक्त है.

यक्ष- अज्ञान क्या है?

युधिष्ठिर- आत्मज्ञान का अभाव ही अज्ञान है.

यक्ष- दुःखों से मुक्त कौन है?

युधिष्ठिर- जो कभी क्रोध नहीं करता, वह दुखों से मुक्त है.

यक्ष- वह क्या है जो अस्तित्व में है और नहीं भी?

युधिष्ठिर का उत्तर था- माया अस्तित्व में है भी और नहीं भी.

यक्ष- माया क्या है?

युधिष्ठिर- नाम और रूपधारी नाशवान संसार ही माया है.

यक्ष- परम सत्य क्या है?

युधिष्ठिर-ब्रह्म ही परम सत्य है.

युधिष्ठिर के उत्तरों से संतुष्ट यक्ष ने उन्हें जल पीने दिया.

युधिष्ठिर जब जल पी चुके तो यक्ष ने कहा- चारों भाइयों में से मैं एक को जीवित कर सकता हूं. किसे जीवित कराना चाहते हो?

युधिष्ठिर ने कहा- आप माद्री पुत्र नकुल को जीवित कर दें.

यक्ष ने पूछा- तुम दस हजार हाथियों के बल वाले भीम और सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर अर्जुन को छोड़कर नकुल को क्यों जीवित कराते हो?

युधिष्ठिर बोले- विपत्ति में भी धर्म का साथ नहीं छोड़ना चाहिए. यदि कुंती का सबसे बड़ा बेटा जीवित है तो माद्री का भी सबसे बड़ा पुत्र जीवित होना चाहिए.

यक्ष ने फिर पूछा- यदि दो को जीवित करना हो तो और किसे जीवित कराना चाहोगे?

युधिष्ठिर ने कहा कि वह सहदेव को जीवित कराना चाहेंगे क्योंकि वह सबसे छोटा है और उसके हिस्से का प्रेम और सेवा दोनों बाकी है.

यक्ष युधिष्ठिर की धर्मनिष्ठा से गदगद हो गया. उसने चारों भाइयों को जीवित कर दिया.

युधिष्ठिर ने कहा- आप वास्तव में कौन हैं? मैं आपका वास्तविक परिचय जानने को उत्सुक हूं. यक्ष ने परिचय देते हुए कहा- मैं तुम्हारा पिता धर्म हूं. तुम्हारी परीक्षा लेने आया था जिससे तुम सफल रहे.

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प्रभु शरणम्

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