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मित्रों, महाभारत की नीति कथाएं प्रतिदिन आपको सुना रहा हूं, आप इसे पसंद भी कर रहे रहे हैं. कई लोगों ने यक्ष-युधिष्ठिर संवाद देने की इच्छा जाहिर की. संवाद व्यापक है. आज उस संवाद के वे प्रश्न दे रहा हूं जिनका आज के जीवन में हमारे साथ सरोकार है. प्रभु का नाम लेकर आनंद लीजिए.
पांडव बनवास काट रहे थे. धर्म को पता था कि युद्ध होकर रहेगा. वह पांडवों की तैयारी आंकना चाहते थे. उन्होंने युधिष्ठिर की परीक्षा लेने की सोची और हिरण का रूप धरकर वहां पहुंचे जहां पांडव निवास कर रहे थे. हिरण पड़ोस की कुटिया में गया और आग जलाने वाली अरणी को सींग में फंसाकर ले भागा.
ब्राह्मण युधिष्ठिर के पास आए और उनसे कहा कि हिरण से अरणी (आग जलाने की लकड़ी) वापस पाने में मदद करें. सभी पांडव हिरण को खोजने निकले. उसका पीछा करते वे थक गए और प्यास लग गई. एक जगह थककर बैठ गए.
युधिष्ठिर ने नकुल से कहा कि आसपास देखो कहीं कोई जलाशय हो तो पीने के पानी का इंतजाम करो. नकुल को एक जलाशय दिखा. नकुल उसमें पानी पीने उतरे. तभी एक आवाज आई- यह जलाशय मेरा है. अगर पानी पीना है तो पहले मेरे प्रश्नों का उत्तर दो.
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