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ईश्वर आपसे धूप बत्ती, पुष्प, मिठाई की आशा नहीं रखते. संसार के ये पदार्थ उन्होंने ही बनाए हैं, उनका उनको क्या सौंपना!!

हम जो ईश्वर को चढ़ाते हैं वास्तव में वह हमारे मन का भाव है जो भौतिक वस्तुओं के रूप में प्रकट होता है.

पर ईश्वर कुछ और मांग रहे हैं, वह चढ़ाइये उन्हें- दिन दूना, रात चौगुना फल मिलेगा. जीवों के प्रति दया, करुणा और परोपकार की भेंट मांग रहे हैं ईश्वर. यह भी अर्पित करके देख लीजिए, लाभ होना ही है.

इसे एक साधारण से उदाहरण से समझा रहा हूं जो खुद पर आजमाया है. आप भी आजमा सकते हैं.

नौकरी ऐसी थी कि रात को ही लौटना हुआ करता था. गली में कुत्ते बहुत तंग करते थे. एक बार दिन में पांच रूपए का बिस्कुट लिया और कुत्तों को खिला दिया.

उसके बाद से वे काटने नहीं दौड़े बल्कि प्रेम से दुम हिलाते पास आने लगे. न मुझे उनसे भय होता था न उन्हें मुझसे.

जिनसे भयभीत था वे एक प्रकार से मेरे प्रहरी बन गए. हमारे अंदर अच्छे गुणों का विकास कराने के लिए उसे धर्म से जोड़ दिया गया है.

आपने सुना होगा न कि शनिवार को कुत्ते को बिस्कुट खिला दो तो शनिदेव प्रसन्न होते हैं. शनि के प्रभाव से जीवन कुछ अस्त-व्यस्त हो जाता है कई बार. इसलिए ऐसे छोटे-छोटे टोटके बताए गए होंगे. जिन कुत्तों से भागना होता था और चोट की आशंका थी उससे मुक्ति मिल गई.

सनातन वैज्ञानिक धर्म है, वह अंधविश्वासी बनने को नहीं कहता. अपने लॉजिक पर चीजों को कसें, हृदय बड़ा करके सोचें तो बहुत सी मान्यताएं उपयोगी लगेंगी उन्हें मान लें. खैर, अपनी बात पर लौटता हूं. ईश्वर चाहते हैं कि हममें करूणा आए तो हमारे बहुत से बिगड़े काम बनते चले जाएं.

जो प्रयास कुत्ते पर असर कर गया वह इंसान के साथ कैसे नहीं काम आएगा? हम बहुत जल्दी राय बना लेते हैं किसी के प्रति. उपकार के बदले त्वरित परोपकार की आशा रख लेते हैं इसलिए यह निष्फल जाता है.

किसी कामवाली को एक साडी पर्व-त्योहार पर दे दी तो सोचने लगेंगे कि आज से इसे हमारे वश में हो जाना चाहिए. हम जो भी आदेश करें बस आंख मूंदकर मान ले. ज्यादा काम करा लें क्योंकि हमने साड़ी दी थी उसे अच्छी वाली.

प्रतिउपकार की आशा से किया कार्य उपकार नहीं होता, व्यावसायिक लेन-देन होता है. लेन-देन में नुकसान तो होते ही रहते हैं फिर क्यों कुपित होना. आपने अव्यवहारिक आशा रखी थी सो उसका नुकसान तो होना ही था.

यह बात क्यों बता रहा हूं!???

प्रभु शरणम् में बच्चों के चारित्रिक विकास की कथाओं की एक शृंखला चला रही है. उसके बाद पेरेंटस के बड़े मैसेज आ रहे हैं. उन्हें अपने बच्चों में बड़ी कमियां नजर आ रही हैं. यही हमारा स्वभाव है.हम स्वयं में कमी देख ही नहीं पाते.

अपनी आंखों से हम अपना चेहरा देख पाते हैं क्या? नहीं न. दर्पण की आवश्यकता होती ही है. इसलिए इस पोस्ट को दर्पण समझ लें. क्या पता बच्चों की शरारतों के रूप में ईश्वर आपके अंदर धैर्य, समझदारी और मुश्किलों का सामना करने के गुण विकसित कर रहे हों.

आपको आइना दिखा रहे हों कि बच्चे के समय में से जो भी समय की कटौती करके टीवी सीरियल और व्हॉट्सएप्प पर दिया उसका खामियाजा है ये. सोचिएगा गौर से. समय कीमती है, उसका इस्तेमाल आपको कैसे करना है.

मुझे समय-समय पर बताते भी रहें कि जो लिख रहा हूं क्या वह आपके लिए उपयोगी साबित हो रहा है या बात हजम नहीं हो रही. सुधार के लिए हमेशा तैयार हूं.

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