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लकड़हारे ने कहा- हम मानवता के धर्म से हैं. हमें दया जैसे गुण सीखने के लिए किसी गुरू के ज्ञान की आवश्यकता नहीं. जिसके मन में दया का भाव है वह इंसान है. यह बात समझने के लिए कोई मंत्र लेना जरूरी नहीं.
धर्मप्रचारकों के पास कहने को कुछ न था. मानवता के गुणों पर अमल करना ही सबसे बड़ी भक्ति है. धर्मग्रंथों का यही सार है. यदि यह सामान्य सी बात किसी को स्वयं समझ में नहीं आती तो किसी भी गुरू द्वारा दिया मंत्र भी इसे नहीं सिखा सकता.
अपने गुरू स्वयं बनिए. हर व्यक्ति में राम और रावण दोनों होते हैं. आत्म मूल्यांकन करते रहिए कि क्या आपके अंदर के राम ज्यादा प्रभावी हैं या रावण हावी हो रहा है. इसका संतुलन स्वतः बना सकें तो किसी गुरू की आवश्यकता नहीं.
संकलन व संपादनः राजन प्रकाश
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