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परशुराम ने उससे उसका नाम इत्यादि पूछा तो उसने परशुराम में कोई रुचि न दिखाई. परशुराम का स्वभाव पहले ही जैसा था. अपनी उपेक्षा देख वे साधु पर भड़क उठे और उसे बुरा भला कहने लगे. साधु सब सुनता रहा पर बोला कुछ नहीं.

परशुराम को लगा हो न हो यह कोई बहुत पहुंचा हुआ तपस्वी है इसलिये हाथ जोड़ कर अपना पूरा परिचय देने के बाद बोले, मुनिवर स्वभाववश मैंने कुछ गलत कह दिया हो तो मेरी गलती क्षमा करें और मुझे कोई बेहतर गुरु मिल सके ऐसा रास्ता दिखाइये.

साधु बोला, मैं देवगुरु वृहस्पति का भाई संवर्त हूं, लगातार तपस्या में लगे रहने के चलते नहीं चाहता कि कोई मेरा ध्यान भटकाये सो इस तरह पागल सा बना रहता हूं. फिलहाल मेरे पास तुम्हें ज्ञान उपदेश देने का समय नहीं है. तुम गंधमादन पर्वत पर दत्तात्रेय के पास जाओ.

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