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रात का चौथा प्रहर आरंभ हो चुका था.
हिरणी को खोजता वहां एक हिरन आ पहुंचा. शिकारी ने उसे मारने के लिए तीर चढ़ाया और कहा तीन हिरणियों को छोड़ने के बाद आखिरकार देव की प्रेरणा से तुम मिल ही गए हो. तुम्हें मारकर मैं अपने परिवार का पेट भरूंगा.
हिरण ने कहा- हे व्याघ्र वे तीनों मेरी पत्नियां हैं. मेरे भरोसे तुम्हारे पास वापस आने की प्रतीज्ञा कर चुकी हैं. वे अपने वचन की पक्की हैं. तम्हारे पास अवश्य आएंगी.
मेरा धर्म है कि मैं उनके वचन की रक्षा करने में सहायक बनूं. तुम मुझे भी समय दे दो ताकि मैं परिवार के लिए उचित प्रबंध कर लूं फिर तुम्हारे पास आ जाउंगा.
अंजाने में ही महादेव की पूजा से उसका मन निर्मल हो गया था. हिरण के वचनबद्धता पर उसके संदेह नहीं रहा.
शिकारी ने हिरण को जाने दिया. किंतु यदि इस बार भी वही सब हुआ और चौथे प्रहर में भी शिवलिंग की पूजा हो गई.
तीनों हिरनी व हिरन आपस में मिले और अपनी शिकार को की गई प्रतिज्ञा के कारण सुबह शिकारी के पास आ गए.
सबको एक साथ देखकर शिकारी खुश हुआ.
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