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शिवरात्रि की रात्रि भजन कीर्तन के साथ सपरिवार रात्रि जागरण करने का विशेष महत्व है.

प्रदोष बेला में शिव तांडव स्तोत्र का पाठ या श्रवण भी करना चाहिए. शिवरूद्राष्टकम् व शिवसहस्त्रनाम का पाठ करते हुए महादेव-पार्वती का ध्यान करके इच्छित वरदान मांगना चाहिए. ये सारे मंत्र आपके महादेव शिव शंभु एप्प में हैं. महाशिवरात्रि के व्रत की कथा भी सुननी चाहिए. कथा इस प्रकार है-

भगवान शिव ने देवी पार्वती को महाशिवरात्रि के व्रत की कथा सुनाई थी. इस कथा को सुनें और परिवार के बड़े-बुजुर्गों को सुनाएं तो पुण्य होता है.

व्रत कथाः

वाराणसी के वन में गुरुद्रुह नामक एक भील रहता था. वह जंगली जानवरों का शिकार करके अपने परिवार का भरण-पोषण करता था. एक बार शिवरात्रि के दिन वह शिकार करने वन में गया. उस दिन उसे दिनभर कोई शिकार नहीं मिला और रात भी हो गई.

तभी उसे वन में एक झील दिखा. उसने सोचा मैं यहीं पेड़ पर चढ़कर शिकार की राह देखता हूं. कोई न कोई प्राणी यहां पानी पीने आएगा. यह सोचकर वह पानी का पात्र भरकर बिल्ववृक्ष (बेल के पेड़) पर चढ़ गया.

उस वृक्ष के नीचे शिवलिंग स्थापित था.

थोड़ी देर बाद वहां एक हिरनी आई. गुरुद्रुह ने जैसे ही हिरनी को मारने के लिए धनुष पर तीर चढ़ाया तो बिल्ववृक्ष के पत्ते और जल शिवलिंग पर गिरे.

इस प्रकार रात के प्रथम प्रहर में अंजाने में ही उसके द्वारा शिवलिंग की पूजा हो गई.

तभी हिरनी ने उसे देख लिया. उसने शिकारी से पूछा कि तुम क्या चाहते हो.

शिकारी पूरे दिन भूखा-प्यासा व्रत में रह गया था. अंजाने में उससे शिवजी की बेल पत्रों और जल के साथ आराधना हो गई थी इसलिए उसमें पशु-पक्षुओं की बोली समझने की शक्ति आ गई.

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