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लकड़हारे को इस तरह के बिना मेहनत के धन का ऐसा चस्का लगा कि हर दूसरे तीसरे जंगल जा कर चोर के छिपाये धन में से उसका दसवां हिस्सा निकाल लेता.
चालाक लकड़हारा जानता था कि चोर चोरी के माल का पूरा हिसाब तो रखता नहीं होगा और इतना भर चुराने से उसको पता नहीं लगेगा. पर लकड़हारे वीरदत्त की पत्नी को शक हो ही गया. पूछ्ताछ की तो किरात लकड़हारे ने सब बता दिया.
लकड़हारे की बीबी बोली, जो धन अपनी मेहनत से मिलता है वही टिकता है और अच्छा होता है, किसी भी दूसरी तरह से आया धन नष्ट हो जाता है और अच्छा भी नहीं होता. हमें इस धन से जनता की भलाई के काम करने चाहिये.
वीरदत्त को पत्नी की बात जंच गयी. कांचीपुरी और उसके आसपास तो बहुत से बढिया बावड़ियां, तालाब और कुंए थे इसलिये वीरदत्त ने दूर की एक जगह चुन कर बहुत बड़ा तालाब खुदवाया.
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