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प्राचीन काल में कांचीपुरी बहुत मशहूर और संपन्न शहर था. इस नगरी में एक चोर रहता था जिसका नाम था वज्र. वज्र अपने काम में बहुत माहिर था. बड़ी बड़ी चोरियां तो वह करता ही, छोटी मोटी पर भी हाथ साफ करने में उसे कोई झिझक न थी.
वज्र शायद ही कभी छुट्टी करता, रोज चोरी कर के जो भी कम या अधिक माल मत्ता मिलता वह राज रक्षकों की आँख बचा कर,आधी रात के बाद जंगल में जा जमीन खोद कर गाड आता.
कांचीपुरी के पास का ही रहने वाला था वीरदत्त. किरात जाति का यह लकड़हारा जंगल से लकड़ी ला, बाजार में बेच कर गुजारा करता था. उस दिन जंगल में ऐसा फंसा कि रात हो गयी. वह रात गुजारने के लिये एक घने पेड़ पर चढ कर बैठ गया.
रात में उसने वज्र को चोरी का माल जमीन खोद कर छुपाते हुये देख लिया. सुबह हुई और उसने जमीन में गड़े धन में से थोड़ा धन निकाल लिया और फिर गढ्ढा पहले जैसे ही भर कर अपने घर चला गया.
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