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विक्रमादित्य ने दीपक राग गाया तो उनके साथ सारे शहर की मोमबत्तियां जल उठीं. संयोग से नगर की राजकुमारी ने ऐसा चमत्कार करते देख लिया और उस दीपक राग गाने वाले से ही शादी करने की जिद ठान ली.

जब उसे पता चला कि जिस गायक से विवाह करना चाहती है उसके न तो हाथ हैं न पांव तो वह दुखी हुई. इसके बावजूद राजकुमारी ने शादी का राग नहीं छोड़ा. विक्रमादित्य को राजा के सामने लाया गया.

राजा आग बबूला हो गया. उसने पहचान लिया और बोला यही था जिसने पहले चोरी की अब राजकुमारी को हथियाना चाहता है. उसने विक्रमादित्य की गरदन उड़ाने के लिये तलवार निकाल ली. विक्रम को आंखों के आगे मौत नाच गयी.

वह भांप गए कि यह सब शनि के कोप के चलते हो रहा है. अपनी मौत से पहले विक्रम ने शनि से प्रार्थना की और अपनी ग़लतियों को स्वीकार कर कहा आप महान हैं मुझे ही घमंड हो गया था. शनि प्रकट हुए और उनके गहने, हाथ, पैर और सब कुछ वापस लौटा दिया.

विक्रमादित्य ने शनि से कहा- हे शनिदेव! मैं मजबूत था ऐसी पीड़ा झेल गया पर किसी साधारण व्यक्ति को आप ऐसी कष्ट कभी मत देना. वे सहन न कर पाएंगे. यह मेरा अनुरोध है. शनि ने बात मान ली.

हाथ पैर गहने मुकुट मिले तो राजा ने अपने सम्राट को पहचान लिया और अपनी बेटी उनको दे दी. उसी समय दुकानदार ने महल में आकर कहा- बतख ने गहने उगल दिए हैं. उसने भी विक्रम को अपनी बेटी सौंप दी. शनि के आशीर्वाद के साथ सम्राट विक्रम उज्जैन लौट आए.
(स्रोत: कर्नाटक का पारंपरिक यक्षगान)

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