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विक्रमादित्य को राजा के पास ले जाया गया. राजा ने हाथ पैर काटकर रेगिस्तान में छोड़ देने का फैसला दिया. ख़ून से लथपथ विक्रमादित्य को रेगिस्तान में छोड़ दिया गया. वह वहां पर घिसटते रहते.
एक दिन एक महिला वहां से गुजर रही थी कि उसकी नजर विक्रमादित्य पर पड़ी. उस महिला का मायके उज्जैन में था किंतु उसका विवाह दूर देश में हुआ था. महिला ने देखा और पहचान लिया.
उसने उनकी हालत के बारे में पूछताछ की और बताया कि उज्जैनवासी उनके गायब होने से बहुत चिंतित हैं. उसने अपने ससुराल वालों से विनती कर अपने घर में रखवा लिया. परिवार वाले मजदूर किसान थे.
अपंग राजा को कोई स्वीकार नहीं करेगा. राजा कमजोर हुआ तो मंत्रियों और सेना में फूट पड़ जाएगी और सिंहासन पर कब्जे की लड़ाई में गृहयुद्ध शुरू होगा. इससे बेहतर है कि वहां यही भ्रम बने रहने दिया जाए कि राजा कहीं गुप्तरूप से किसी अभियान पर हैं.
यह सोच विक्रमादित्य ने स्त्री से कहा कि वह अभी उज्जैन वापस नहीं जाना चाहते. वह भी उस परिवार के साथ खेतों में निगरानी और हांक लगाने के काम में लग गए. एक शाम विक्रमादित्य घर पर कुछ कर रहे थे कि काम कर रहे थे कि हवा से मोमबत्ती बुझ गयी.
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