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जब महादेव ने पार्वती देवी की पूरी परीक्षा कर ली औऱ विवाह के लिए सहमत हुए तो सप्तर्षियों ने पर्वतराज हिमवान के घर जाकर शिव-पार्वती के विवाह के लिए शुभ दिन, शुभ नक्षत्र और शुभ घड़ी का निश्चय किया.
लग्नपत्रिका तैयार करके ब्रह्माजी के पास पहुंचा दी गई. महादेव के विवाह में सबको आमंत्रण मिला. समस्त देवता अपने वाहनों पर आरूढ़ होकर शिवजी की बारात के लिए चल पड़े.
शिवगणों ने महादेव का शृंगार किया. जब गण शृंगार करने लगें तो क्या होना था, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है. गणों ने शिवजी की जटाओं से मौरमुकुट बना दिया.
गले में कंठाहार की जगह चमकते सर्प डाल दिए. कुण्डल, कंकण पहना दिया और वस्त्र बाघ का चर्म लपेट दिया. वक्ष पर नरमुण्डों की माला और शरीर में भस्म की मालिश हुई.
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