धुंधुकारी ने बांस में बैठकर कथा सुनी. संध्या होने पर जब कथा को विराम दिया गया, तभी बाँस की एक गांठ जोरदार आवाज के साथ फटी. इसी प्रकार सात दिन की कथा में सातो गांठ फटे.
अन्तिम दिन धुंधुकारी प्रेतयोनि से मुक्त होकर दिव्यरूप में सबके सामने प्रकट हो गया. तभी भगवान श्रीकृष्ण के पार्षदों के साथ एक दिव्य विमान उतरा.
देवदूत आदरपूर्वक धुंधुकारी को विमान में बिठाकर स्वर्ग ले जाने लगे. गोकर्ण ने उन्हें टोका- सभी ने समान रूप से कथा सुनी है, फिर आप मात्र धुंधुकारी को ही क्यों लेकर जा रहे हैं?
देवदूत ने कहा- यह सत्य है कि सबने समान रूप से कथा सुनी किन्तु इस प्रेत की तरह मनन किसी ने नहीं किया.
धुंधुकारी ने सात दिनों तक निराहार रहकर अपनी इन्द्रियों पर नियन्त्रण रखते हुए कथा का श्रवण किया था. इसीलिए यह श्रीकृष्ण के परम पद का अधिकारी बना.
जो सच्चे मन से और श्रद्धापूर्वक भागवत सुनते या सुनाते हैं उन्हें श्रीहरि के चरणों में स्थान मिलता है. यह कहकर देवदूत धुंधुकारी को विमान में लेकर गोलोकधाम चले गए. (इति धुंधुकारी-गोकर्ण कथा)
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संकलन व संपादनः प्रभु शरणम्
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