संसार के प्रत्येक प्राणी को परमात्मा का अंश मानकर उसके साथ उचित व्यवहार करे. अपने ह्दय में प्रेम, करूणा और धर्म को स्थान देकर परम आनन्द को प्राप्त करे जो उसे मुक्ति का मार्ग दिखाए.
विवेक का प्रयोग हम वैसे नहीं कर रहे जो प्रभु की इच्छा है. हमने गलत व्याख्या कर ली कि चाहे तमाम पाप कर लो लेकिन पूजा-पाठ या दान करो तो सब पापों से मुक्ति हो जाएगी. यह कुछ और नहीं बल्कि नदी के छोरों के पास आने की प्रतीक्षा जैसा है.
यह कथा मुरादाबाद यूपी से अजय सैनीजी ने भेजी है. अजयजी कंप्यूटर इंजीनयरिंग के विद्यार्थी हैं. यदि आपके पास भी है कोई प्रेरक या धार्मिक कथा तो हमें भेजें.
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प्रभु शरणम्