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सारा संसार इसी मोह में पड़ा है. उसे ईश्वर चाहिए लेकिन बहुत सुलभता से. ईश्वर से मिलकर भी तो वह अपनी आकांक्षाएं, अपनी जरूरतों की लंबी सूची ही पकड़ाता है, सिर्फ प्रभु की छवि में खो जाने की मंशा कितने बार होती है. सोचकर देखिएगा, आत्ममंथन कीजिएगा.

ईश्वर हैं हम सबके बीच, हम सबके भीतर उनको देखने वाली दृष्टि नहीं है हममें. उसे जागृत करनी पड़ेगी. उसके लिए तो मोह, माया, लोभ आदि का बंधन तोड़ना होगा. इतना सरल नहीं है.

जैसे हम अपनी संपत्ति को सुरक्षित रखने के लिए ताला लगाते हैं लेकिन जिसे उसे ले जाना होता है वह सारे खतरे उठाकर ताले तोड़ ही लेता है, वैसे ही ईश्वर ने भी मोह, माया, लोभ आदि से मानव को युक्त करके स्वयं को छुपा रखा है. जिसे पाना है उसे इस ताले को तोड़ना ही पड़ेगा.

राम नाम जपना, पराया माल अपना वाली सोच नहीं जाहि विधि राखे ताहि विधि रखिए वाली दृष्टि से ईश्वर मिलेंगे. अन्यथा तांबे, चांदी, सोने और हीरे के पहाड़ तो हैं ही ईश्वर के मार्ग से भटकाने के लिए…

संकलनः महंथ श्री रामस्नेही दास जी महाराज
संपादनः राजन प्रकाश

यह प्रेरक कथा महंथ श्रीरामस्नेहीदास जी महाराज ने प्रभु शरणम् के प्रेमियों के लिए भेजी. आप महामंडलेश्वर जैसे उच्च धर्मपर पर सुशोभित हैं और नासिक के श्रीलक्ष्मी नारायण जी बड़ा मंदिर तपोवन के महंथ के रूप में सनातन की निरंतर सेवा में रत हैं. प्रभु शरणम् को आपका आशीर्वाद सदैव मिलता रहता है.
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