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सारे खरगोशों ने मिलकर लम्बकर्ण नामकर खरगोश को इस काम के लिए चुना. वह खरगोशों में सबसे चतुर माना जाता था. लम्बकर्ण चंद्रमा का दूत बनकर हाथियों के राजा के पास पहुंचा.

गजराज जहां आराम कर रहा था वहां लंबकर्ण एक ऊंची जगह पर चढ गया और भरसक बहुत ऊंची आवाज में बोला- दुष्ट गजराज! तुम इस तरह बेखटके चन्द्रमा के जलाशय में क्यों आया करते हो! अभी यहां से लौट जाओ और फिर कभी इधर मत आना.

गजराज ने चौंक कर पूछा, “तुम हो कौन?” लंबकर्ण बोला- मैं लंबकर्ण महाराज चन्द्रमा का दूत हूं. उन्होंने ने ही मुझे तुम्हारे पास भेजा है. आपको यह पता ही होगा कि दूत को अपराधी नहीं माना जाता.

गजराज ने कहा- “भाई लंबकर्ण! आप भगवान चन्द्रमा का सन्देश बताइए. लंबकर्ण बोला- कल तुमने अपने झुंड के साथ आकर अनेक खरगोशों के मार ड़ाला. राजा चंद्रमा ने कहा है कि यदि तुम जीवित रहना चाहते हो तो फिर कभी उस तालाब पर मत जाना.

गजराज ने कहा- संदेश तो ठीक पर भगवान चंद्रमा हैं कहां? जवाब में लंबकर्ण बोला- आपके झुंड ने जिन खरगोशों के बच्चों को कुचल दिया महाराज उनकी शोक सभा में आए हुए हैं और इसी सरोवर में मौजूद हैं.
गजराज बड़ा चकित हुआ और बोला- अगर ऐसी बात है तो तुम मुझे भगवान चंद्रमा के दर्शन करा दो, मैं उनको प्रणाम कर यहां से चला जाऊंगा. लंबकर्ण ने कहा वह ऐसा करा सकता है पर शर्त है कि गजराज को उसके साथ अकेले ही चलना होगा.
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