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गणपति की माया सफल रही, महादेव का वास्तविक रूप विद्यापति के सामने आ गया. अब तो उन्हें कैलाश लौटना ही था.

भक्ति ने फिर से रंग दिखाया. जैसे ही विद्यापति को सत्य का पता चला उनकी भक्ति ने सौगुना रंग धारण कर लिया. वह तो जैसे विक्षिप्त हो गए. उनके आराध्य सालों से घर में निवास करते थे, अपने सौभाग्य पर भरोसा ही नहीं हो रहा था.

कभी पश्चाताप के आंसू कि आखिर वह भगवान को पहचान क्यों नहीं पाए, तो कभी किसी पुरानी बात पर अपना कोई कठोर व्यवहार याद आने लगा. भक्त विद्यापति की हालत विचित्र हो गई.

थोड़ी देर में सामान्य हुए. महादेव की कृपा से उनके त्रिताप (ताप तीन तरह के कहे गए हैं- दैहिक, भौतिक और दैविक) नष्ट हो गए.

उन्हें ऐसी हालत में छोड़कर जाना महादेव का उचित प्रतीत नहीं हुआ क्योंकि उनकी शारीरिक और मानसिक हालत बहुत अच्छी नहीं थी.

महादेव ने विद्यापति से एक वचन लिया कि उनके वास्तविक रहस्य को वह कभी किसी को बताएंगे नहीं वरना हमेशा के लिए उनसे विदा लेकर शिवलोक प्रस्थान कर जाएंगे.

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